Wednesday, 6 October 2010

शक्ति दो मां, शक्ति दो

ये कविता आज से चार वर्ष पहले नवरात्रि के पहले दिन लिखी थी। नवरात्रियों के नौ दिनों में मां दुर्गा के नव अवतारों की पूजा अर्चना की जाती है। ये कविता कवि की एक प्रार्थना है मां दुर्गा से। इस शुक्रवार से नवरात्रियां आरंभ हो रहीं हैं, इस उपलक्ष्य में यह कविता प्रस्तुत है जिसका शीर्षक है,  

शक्ति दो मां, शक्ति दो’।  


शक्ति दो मां! शक्ति दो,
अज्ञान छूटे, अभिमान रूठे,
तमस की ये रात टूटे,
शक्ति दो मां, शक्ति दो।१

सत्य की जय हो सदा,
असत्य का हो सर्वनाश,
रहें पथ पर हम अटल,
यह हमें वरदान दो,
शक्ति दो मां, शक्ति दो।२

अमावस निशा के बाद,
अब प्रभा का ज्ञान हो,
नीर क्षीर का हो विवेक,
यह हमें वरदान दो,
शक्ति दो मां, शक्ति दो।३

उन्नति की राह में,
हम निरंतर बडते चलें,
अडिग, अविचल, अखंड होकर,
निर्बाध हम आगे बढें,
शक्ति दो मां, शक्ति दो।४

अज्ञान छूटे, अभिमान रूठे,
तमस की ये रात टूटे,
असाध्य को भी साध्य कर दें,
यह हमें वरदान दो,
शक्ति दो मां, शक्ति दो।५  




7 comments:

Parul.. said...

nice one....... shubh navratri.......

कथाकार said...

Thanks Parul, shubh navaratri to you as well. :)

Komal said...

nice prayer.......shubh navratri !!!!

Anonymous said...

surdhir ji app to lajvab hai...

कथाकार said...

dhanywaad :)

Anonymous said...

i am in fact late to read all this. but thx for telling me abt your blog. actually a very nice idea and work to submit one's gratitude towards hindi and the issues so related.

yar tumne hamare ander bhi purane shauk ko jeevant kar diya hai. ho sakta hai fir likhne lagun...

कथाकार said...

वाह क्या बात है जुगल :)