Friday 14 August 2015

आज़ादी ही कुछ और है (व्यंग्य कविता)

रोज दफ्तरों के चक्कर लगाने की 
चपरासी को भी ‘सर’ कह कर बुलाने की
अंततः जेब गरम कर के काम करवाने की
फिर भी ईमानदार भारतीय कहलाने की
आज़ादी ही कुछ और है|१

काला धन कमाने की
खाने में जहर मि
लाने की
बेईमान को सीना तान के चलने की
ईमानदार हो? तो डर के रहने की  
आज़ादी ही कुछ और है
|२

कन्या भ्रूण हत्या की
महिला के यौन शोषण की
सामूहिक बलात्कार करने की
और फिर बहन से राखी बंधवाने की
आज़ादी ही कुछ और है|३

पेट में चाकू भौंकने की
चेहरे
को तेज़ाब से छोंकने की
चलते को दिन दहाड़े लूटने की
और लुटते पिटते को शान्ति से देखने की

आज़ादी ही कुछ और है
|४

पानी मोटर से खींचने की
बिजली का मीटर रोकने की
घर का कूड़ा सड़क पर फेंकने की
और फिर सरकार को कोसने की
आज़ादी ही कुछ और है|५

पंचायत बिठाने की
प्रेमियों को लटकाने की
बहु से दहेज मंगाने की
नहीं तो शमशान तक पहुंचाने की
आज़ादी ही कुछ और है
|६

भ्रष्टाचार करने की
गलत देख मूक बनने की
बिना टिकट यात्रा करने की
फिर विंडो सीट के लिए झगड़ने की
आज़ादी ही कुछ और है
|७

पैसे से काम करवाने की
नकली डिग्रियां बंटवाने की
वोट के बदले नोट दिलवाने की
और फिर भी माननीय कहलाने की
आज़ादी ही कुछ और है|८

गरीब को भूखे पेट सोने की
बाल
-मजदूरी पर रोने की
नदियों में गंदगी मिलाने की
और फिर गंगा स्नान के लिए जाने की
आज़ादी ही कुछ और है
|९

जंगलों को अंधाधुन्ध काटने की
अपनों को रेवड़ी बांटने की
च्चे को फंसाने, और झूठे को बचाने की
फिर कलियुग पर दोष लगाने की
आज़ादी ही कुछ और है
|१०

अपनी बीबी को कोसने की
पडोसन के बारे में सोचने की
घर से निकलते ही घूरने की

घर में बीबी-बच्चों को पीटने की
आज़ादी ही कुछ और है|११

महिला सीट पर बैठने की
चलती गाडी से कूदने की
पान खा के थूकने की
और दीवार पे मूतने की
आज़ादी ही कुछ और है|१२