अंतत: मेरी कई महीनों की तपस्या सफ़ल हुई और मुझे ब्रह्मा जी ने दर्शन दिये
और बोले,
पुत्र मैं तेरी निष्काम तपस्या से अति प्रसन्न हुआ, मांग
तू क्या चाहता है?
मेरी तो मानो लाटरी
लग गयी, मैने कहा,
हे
प्रभु! आप मेरी तपस्या से प्रसन्न
हुए यही मेरे लिये गर्व की बात
है, लेकिन आप इतना कह रहे हैं तो क्रपया मुझे यह वरदान दीजिये कि, मेरी म्रत्यु न दिन में हो न रात में, न अस्त्र से
ना शस्त्र से, न
देव के हाथों ना दानव से.
ब्रह्मा जी का मुंह खुला का खुला रह
गया, शायद मन
ही मन कह रहे होंगे कि ये साला दूसरा हिरण्यकशिपु कहां से आ गया। फ़िर भी
बोले,
हे
वत्स! वरदान का नियम यह है कि एक वरदान बस एक ही व्यक्ति
को दिया जा सकता है, और फ़ोर योउर काइन्ड
इन्फ़ोर्मेशन यह वरदान मैं हिरण्यकशिपु को हजारों, साल पहले दे चुका हुं और वैसे
जो तूने मांगा था तू उनमें से किसी से भी नहीं मरेगा। मांग क्या चाहता है?
अब यदि मैं अमरता का
वरदान मांगता तो ब्रह्मा जी कहते कि यह रावण ने मांग़ लिया था, तो मैने थोडा दिमाग लगाया
और कहा,
प्रभु
मुझे पांच सौ साल की आयु दे दिजिये।
हठ
पगले, सीधे सीधे क्यों नहीं कहता कि नेता बनना चाहता
हुं।
नहीं
प्रभु, आप मुझे गलत समझ रहे हैं, नेता बनने का मुझे कोई शौक नहीं है। मैं तो बस
लंबी जिंदगी जीना चाहता हुं।
मूर्ख इतनी लंबी जिंदगी ले कर क्या करेगा। तेरे पोते, पडपोते और आने वाली पीढिया मुझे गालियां देंगे कि इसे इतनी लंबी
आयु क्यों दी? क्यों बुडापा लेकर दूसरों पर बोझ बनना चाहत है?
यह बात मुझे भी उचित लगी, तो मैने सोचा कि क्यों ना देश के लिये ही कुछ किया जाय।
प्रभु!
मुझे बस एक दिन के लिये भारत
का प्रधानमंत्री बना दो, मैं इस देश की व्यवस्था को सुधारना चाहता हुं, और अपने देशवासियों
के लिये भी कुछ करना चाहता हुं।
देख वत्स!
बना तो मैं तुझे प्रधानमंत्री सौ
दिनों के लिये दुं, पर तू क्या उखाड
लेगा? अपना ईमानदार मन मोहन पिछले आठ
साल में कुछ नहीं कर पाया तो तू
क्या कर लेगा।
मैं सोच में पड
गया, कि बात तो वैसे ब्रह्मा जी की सही थी कि अपने आप को ईमानदार कहने वाले मौन- मोहन
जी भी यदि आठ साल में कुछ नहीं
कर पाये तो मैं क्या कर लूंगा। ब्रह्मा जी आगे बोले।
मुझे
लगता है कि या तो तू महा मूरख
है या फ़िर प्रधानमंत्री बनाने को
कहकर मेरी बेज्जती कर रहा है। अबे क्या रखा है, प्रधानमंत्री बनने में, मांगना है तो
कोयला मंत्रालय मांग,
दूरसंचार मंत्रालय मांग। मांग ही रहा है तो कम से कम ऐसी चीज तो मांग कि तेरी आने वाली सात पुश्तों को दुबारा ना मांगना पडे।
नहीं
प्रभु, यह आप क्या कह रहें हैं, आप तो जानते हैं मैं
एक देश भक्त, ईमानदार व्यक्ति हुं।
अरे,
तुम्हारे जैसे सीधे-सादे ईमानदारों
के कारण ही तो तुम्हारा देश लुट
रहा है, वो लूटते रहते हैं और तुम अपनी ईमा्नदारी की दुहाई देकर चुप बैठे रहते हो। छोडो मैं भी कहां पहुंच गया। हां, तुझे क्या चाहिये शीघ्र बता?
आपने तो मुझे कन्फ़्युज कर दिया, मेरे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या मांगु। अच्छा प्रभु आपने
कहा कि मेरी म्रत्यु न शस्त्र
से होगी ना अस्त्र से, न
दिन में न रात में, न देवता के हाथों ना असुर
के। यह तो बताइये कि मेरी म्रत्य
आखिर कैसे होगी?
निरे
मूर्ख,
तू महंगायी से मारा जायागा। हाहा
हाहा हाहा
ब्रह्मा का अट्टहास मेरे कानों में वज्र
की भांति प्रतीत हुआ, मानों वो
हमारी मूर्खता पर हंस
रहे थे। मुझे लगा कि महंगायी का
तोड मुझे मालूम है। देखो अभी हिसाब बराबर करता हुं।
हे
प्रभु, आप मुझे बस ढेर सारा पैसा दे दीजिये,
जब मेरे पास ढेर सारा पैसा होगा तो मैं महंगायी से कैसे मरुंगा। प्रभु यही है
मेरी मांग।
मेरा इतना कहना था
कि एक बडा अट्टहास हुआ और ब्रह्मा जी गायब हो गये, और फ़िर आकाशवाणी होने लगी।
हे
मेरे मूर्ख भक्त!
ये तेरे वरदान की आखिरी बारी थी
और तूने इसे अपनी मूर्खता से बेकार
कर दिया। तुझे इतना भी नहीं मालूम
कि पैसे पेड पर नहीं लगते हैं।
ऐसा
अन्याय मत कीजिये प्रभु,
अपने इच्छा से ही कुछ दे दीजिये?
कुछ भी।
तथास्तु!
मैं तुझे एफ़ डी आई देता हुं, मौज कर।
तभी अचानक से मेरी
नींद खुली टीवी पर मोहन सिंह पत्रकारों को संबोधित कर
रहे थे, कि रुपये पेडों पर नहीं.......