Saturday 20 November 2010

मंदोदरी और महाभारत

श्री राम के लंका पर विजय के उपरान्त नियम के अनुसार श्री राम को लंका का राजा होना था। विभीषण ने भी श्री राम से प्रार्थना की कि वह लंका का राज्य संभाल लें,  तब प्रभु ने कि हे लक्ष्मण! ये सोने की लंका मुझे आकर्षित नहीं करती है, माता और जन्म भूमि तो स्वर्ग से भी बढकर है। (जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी) । तब श्री राम ने विभीषण को लंका का राजा घोषित किया और सीता, लक्ष्मण और वानरों को लेकर वापस प्रस्थान की तैयारी करने लगे। जाने से पहले रावण की विधवा मंदोदरी प्रभु के पास आयी। रावण की पत्नी मंदोदरी को एक पतिव्रता नारी के रुप में जाना जाता था। रावण की म्रत्य के बाद उसने एक संन्यासिन की भांति जीवन व्यतीत करने का विचार किया। अत: जाने से पहले वह श्री राम से मिलने आयी।

वार्तालाप के दौरा्न उसने प्रभु से पूछा कि,
''हे राम! राम-रावण का जैसा यह घनघोर युद्ध हुआ, ऐसा घनघोर युद्ध क्या भविष्य में फ़िर कभी होगा ?''

तो प्रभु बोले कि, ''देवी मंदोदरी! ये युद्ध जो राक्षसों और वानरों के बीच हुआ था एक मायावी संग्राम था। ऐसा युद्ध तो पहले कभी नहीं हुआ है, जिसमें किसी मानव ने वानरों की सहायता से परम शक्तिशाली राक्षसों को पराजित किया हो। परन्तु इससे भी घनघोर  और भयंकर युद्ध द्वापर युग के अंतिम चरण में होगा और मैं भी उस युद्ध में उपस्थित रहुंगा।''
 
''हे प्रभु! मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं भी उस संग्राम को देख सकुं। क्रपया मेरी इस इच्छा को पूर्ण करने की क्रपा करें''।

''तथास्तु देवी मंदोदरी!  वर्तमान त्रेतायुग की समाप्ति के पश्चात द्वापर युग का आरंभ होगा, तब तक आप वन में रहकर तपस्या कीजिये और जैसे ही यह भीषण युद्ध प्रारंभ होगा तो मैं आपको युद्ध देखने के लिये आमंत्रण भेजुंगा।''

ऐसा कहकर प्रभु राम ने आकाश मार्ग से अयोध्या से के लिये प्रस्थान किया। इसके बाद की कहानी आप सभी जानते हैं कि कैसे श्री राम ने अयोध्या में शासन किया और फ़िर वैकुंठ धाम को प्रस्थान किया। इसके बाद द्वापर युग प्रारम्भ हुआ और धीरे धीरे कुरु वंशियो का राज आया जिसमें शांतनु, पांडु और ध्रतराष्ट्र आदि ने शासन किया। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री क्रष्ण के रुप में अवतार लिया। तत्पश्चात पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध एक भीषण, घोर युद्ध हुआ जिसे महाभारत के नाम  से जान जात है।  महाभारत के युद्ध के ठीक पहले, भगवान क्रष्ण ने भीम को लंका में मंदोदरी के पास महाभारत युद्ध देखने हेतु आमंत्रित करने के लिये भेजा। भीम, क्रष्ण के दूत बनकर लंका पहुंचे।  

लंका पहुंच कर भीमसेन थक गये थे, तो उन्होने सोचा कि नहा धोकर थोडा आराम कर लिया जाये। कुछ दूर चलने के बाद उन्हें,  वन में दो एक जैसे आकार के दो जलाशय (तालाब) दिखायी दिये, उन जलाशयों के बीच में एक बडी गुफ़ा भी थी। अत: भीम ने उन दोनो में से एक तालाब में जाकर खूब देर तक नहाया और फ़िर वन से कुछ फ़ल तोडकर खाने के उपरान्त उस बडी गुफ़ा में जाकर सो गये।   
अपनी थकान मिटाने के बाद मंदोदरी को भीमसेन में बडी शीघ्रता से खोज लिया और मंदोदरी के पास जाकर अपने आने का उद्देश्य बताया।
  
''हे देवी मंदोदरी! मैं आपको एक ऐसे युद्ध को देखने के लिये आमंत्रित करने आये हुं जैस युद्ध आज तक न कभी हुआ और ना कभी होगा। मैं हस्तिनापुर से आया हुं और मुझे द्वारका नरेश क्रष्ण ने भेजा है।'' 

यह बात सुनते ही मंदोदरी समझ गयी कि, हो ना हो, यह वही संग्राम है जिसके बारे में श्री राम ने मुझे त्रेतायुग में बताया था। मंदोदरी बोली,
''आपका और क्रष्ण का धन्यवाद कि आपने मुझे आमंत्रित किया। मैं भी उस युद्ध को देखने के लिये अति उत्साहित हुं। मैं इस बात को लेकर रोंमाचित हुं कि यह संग्राम उस संग्राम से भी भयंकर होगा जिसमें, रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद और राम-लक्ष्मण जैसे वीरों ने भाग लिया था।''

''हे देवी! क्षमा करें, परन्तु इस रण में भी एक से एक भट-महाभट योद्धा है, अर्जुन, युधिष्ठिर, कर्ण, अभिमन्यु और दुर्योधन, मैं किस-किस योद्धा  का नाम आपको गिनाउं।''

''अच्छा एक बात बताइये भीमसेन जी कि, इस युद्ध में सबसे वीर और बलवान योद्धा कौन है?''

''हे देवी मंदोदरी, मैं अपने बडाई अपने आप क्या करुं, परन्तु इस महाभारत के युद्ध  में, मैं ही सबसे वीर और बलवान योद्धा हुं।''

भीम की बात और उसके शरीर के आकार को देखकर मंदोदरी आश्चर्य में पड गयी, क्योंकि उसने तो कु्म्भकर्ण, रावण और कई ऐसे विशालकाय वीर देखे थे जिनके सामने तो भीम आकर कुछ भी नहीं था। यहां तक की रावण की सेना में भी इतना छोटा राक्षस कोई नहीं था। तब मंदोदरी ने सोचा कि यह भीम जो अपने आप को महाभारत के युद्ध का सबसे शक्तिशाली योद्धा बताता है और यह ऐसा है तो ना जाने और योद्धा कैसे होंगे। तब मंदोदरी ने कहा,

''हे भीमसेन, आपका धन्यवाद कि आप इतनी दूर से मुझे संदेश देने आये, मैं आने की पूरा प्रयास करुंगी। लेकिन आप इतनी लंबी यात्रा के बाद थक गये होंगें, थोडा आराम कर लीजिये।''

''देवी मंदोदरी! आपके पास आने से पहले ही मैने सरोवर में स्नान के पश्चात के उन दो सरोवरों के मध्य स्थित गुफ़ा में आराम कर लिया था। अब मैं आज्ञा चाहुंगा, मुझे जाकर युद्ध की तैंयारियों को भी देखना है।''
  
भीमसेन वापस लौट गये, परन्तु मंदोदरी ने निश्चय कर लिया था कि यह तो कोई मामूली सा युद्ध मालूम पडता है, इसको क्या देखना। अत: मंदोदरी ने कुरुक्षेत्र जाने का विचार त्याग दिया और अपने तपस्या में लीन हो गयी। वहां महभारत का घनघोर संग्राम प्रारम्भ हो गया था। सारे संसार के एक से बढकर एक वीर युद्ध में भाग ले रहे थे। चारों ओर रक्त की नदियां बह रही थी, और दोनो तरफ़ के सैनिक गाजर मूली की तरह कट रहे थे। वास्तव में यह ऐसा युद्ध था जैसा कभी इतिहास में नहीं हुआ था।
इसी दौरान, नारद मुनि घूमते-घूमते लंका पहुंचे और उनकी मुलाकात तपस्या रत मंदोदरी से हुई। 

कुशल क्षेम पूछने के बाद बात आये तो मंदोदरी बोली, ''हे देवर्षि नारद! आप तो संसार का भ्रमण करते रहते हैं, तनिक हेडलाईंस तो बताइये तो कि क्या नया चल रहा है आजकल।''

नारद बोले, ''हे मंदोदरी, क्या तुम्हें ज्ञात नहीं? आजकल तो सम्पूर्ण विश्व में हाहाकर मचा हुआ है, भारतवर्ष में ऐसा भीषण संग्राम हो रहा है जैसा आज तक न कभी हुआ और ना होगा।''

मंदोदरी आश्चर्य करते हुए बोली, ''हे देवर्षि! आपने तो राम और रावण का संग़्राम भी देखा है तो आप ऐसा कैसे कह रहे हैं कि महाभारत का जैसा युद्ध कभी हुआ ही नहीं।''

''देवी वह युद्ध तो भीषण था ही परन्तु वर्तमान संग्राम के सामने तो यह कुछ भी नहीं। इस युद्ध में सम्पूर्ण विश्व के एक से बढकर एक रथी, महारथी, अतिरथी योद्धा भाग ले रहे हैं।''

''अच्छा देवर्षि एक बात बताइये की इस युद्ध में सबसे वीर और शक्तिशाली योद्धा कौन है?''

''देवी, वैसे तो किसी एक का नाम लेना थोडा कठिन है, परन्तु यदि आप सबसे शक्तिशाली की बात करती हैं, तो वह राजा पांडु का पुत्र भीमसेन है।''

आपने आंखो को फ़ाडती हुई मंदोदरी बोली, ''आर यु श्योर? वही भीम तो मुझे आमंत्रित करने आया था। उसको आप वीर कहते हैं, जो कुम्भकर्ण की आंखो के गढ्ढों से बनी तालाबों में नहाकर आया और उसकी नासिका (नाक) से बनी गुफ़ा में घंटों आराम से सोया था। मुझे तो विश्वास नहीं होता। विल यु प्लीज एलोबरेट?''

नारद जी बोले, ''आखिर कहना क्या चाहती हो (थ्री इडियट के लेक्चरर की तरह)? मैं असत्य भाषण नहीं करता हुं, उसने तो कौरवों की सेना में हाहाकर मचा रखा है। उसने प्रतिज्ञा की थी कि वह ध्रतराष्ट्र के सौ पुत्रों का वध करेगा और अस्सी का कर चुका है, सेंचुरी में बस बीस ही रह गये हैं। और जिस  रन-रेट से वह बढ रहा है जल्दी ही संचुरी बना देगा।''

''हुंह! मुझे तो विश्वास नहीं होता नारद जी, मैं नहीं मानती।''

''हाथ कंगन को आरसी क्या पढे लिखे को फ़ारसी क्या, अभी प्रूफ़ करता हुं'', नारद बोले।

नारद जी ने मंत्र पढने आरंभ किये और लंका में भूकंप सा आने लगा। धरती डोलने लगी और भडाम-भडाम की आवाजें आने लगी। ऐसा लग रहा था कि मानों आसमान से पर्वत गिर रहे हों। जब मंदोदरी में आपने आस आसमान से गिरते हाथियों को देखा तो वह डर के मारे चीख उठी। आसमान से दना-दना हाथी गिर रहे थे। मंदोदरी नारद जी से बोली, इसे बंद कीजिये देवर्षि, अन्यथा चारों ओर तबाही हो जायेगी। नारद जी ने हंसते हुये मंत्र बोलने बंद किये तो फ़िर जाकर हाथियों की बरसात बंद हुई। थोडी देर में ही चारों ओर सब कुछ तहस नहस हो चुका था। मंदोदरी को उजडी हुई अशोक वाटिका की याद आ गयी जिसे हुनमान जी ने नष्ट किया था। मंदोदरी बोली, ''हे मुनि! ये क्या था?''

हंसते हुये नारद जी ने कहा, ''ये महाभारत का दो मिनट का प्रिव्यु था। अब तो विश्वास हुआ कि मैं सत्य कह रहा हुं।''

''ठीक है, परन्तु यह बताइये कि संग्राम और इन हाथियों की बरसात का क्या तात्पर्य है?''

''देवी, ये वो मरे हुए और जीवित हाथी हैं जिन्हें भीमसेन ने क्रोध में आसमान में उछाल दिया था। युद्ध के दौरान यदि जीवित या मरे हुये हाथी भीमसेन का मार्ग अवरुद्ध करते हैं, या फ़िर पांडवों की सेना को कुचलते हैं तो भीमसेन आवेश में उन्हें इतने वेग से आसमान में उछालते हैं कि वह कभी लौट कर नहीं आते हैं और उपग्रह की भांति अभी भी सैकडों हाथी प्रथ्वी परिक्रमा कर रहे हैं। यदि अभी भी विश्वास नहीं हो तो थोडा ट्रेलर और दिखायुं क्या?''

''नहीं देवर्षि नहीं, मैने तो सच में ऐसा युद्ध मिस कर दिया जैसा फ़िर कभी नहीं होगा।''



Note: ये बात सही है कि भीम ने कई हाथियों को आसमान में फ़ेंक दिया था, इसका वर्णन महाभारत के युद्ध में आता है। मुझे ये याद नहीं है इसे दूरदर्शन वाली महाभारत में दिखाया गया था या नहीं। परन्तु भीम में दस हजार हाथियों का बल था। मुझे लगता है कि यदि वह महाभारत आज बन रही होती तो भीम का किरदार निश्चित रूप से खली को मिलता। 
               

1 comment:

Unknown said...

कहानी सत्य है या झूठ कह नहीं सकता लेकिन भाषा का पश्चायतीयकरण करके उसकी वास्तिविकता को संदिग्ध बना दिया है।ईश्वर की महिमा अपार है और मैं अल्पज्ञानी।