Tuesday, 2 November 2010

दीपावली मंगलमय हो

आज नवां साल है, जब मैने दीपावली पर पटाखे चलाने छोड दिये थे। बचपन के दिनों में, एक वो समय था जब पटाखे के जलने या फ़टने के बाद निकलने वाली बारूद की खुशबू बढी अच्छी लगती थी। बत्ती टूट चुके हुये बमों और अनारों के बारूद को निकाल कर कागज में रखकर जलाने का आनन्द ही कुछ और था, या फ़िर अगले दिन सुबह उठकर छत पर जा कर देखना की कल रात कितने राकेट हमारी छत पर गिरे थे। बच्चों के लिये तो दिवाली का मतलब ही पटाखे होता है।

यहां इंग्लैंड में तो कुछ पता नहीं चलता है कि कब कौन सा त्यौहार आया और चला गया। लेकिन दिवाली और होली तो खास होते हैं, ऐसे में अवश्य अपने देश, मौहल्ले और घर की याद आती है कि वहां ऐसा हो रहा होगा, वैसा हो रहा होगा। चलिये यदि आप भारत में हैं तो दिपावली का आनन्द लिजिये।

ये मेरी पहली कविता थी, अत: इसमें भी काव्यात्मक सौन्दर्य तो नहीं है, परन्तु मेरे मन के विचारों को अवश्य व्यक्त करती है। इस कविता का कोई शीर्षक भी नहीं है, क्योंकि ये तो बस मन की बात तो व्यक्त कर रही है।


क्षणिक प्रकाश की फ़ुलझडियों से,
बारूद के इन फ़ूलों से,
मोम तेल की क्षणिक प्रभा से,
अंतस कलुसित,
पर इन आकर्षक उपहारों से,
क्या रात का अंधेरा
दिन के उजाले का अंश भी पा सकेगा?
जिस दीपावली की प्रतीक्षा थी,
युगों से,
क्या वह दिन कभी आ सकेगा?
क्या वह प्रतीक्षा कभी पूरी हो पायेगी?
या यह दीपावली भी
अंधकार,
काला प्रकाश
छोड जायेगी।

नहीं,
वह दिन आयेगा,
जब हम प्रकाश और धमाके के धुएं
के बीच के अंतए को पहचान जायेंगे,
धन और वैभव के नहीं
मानवता और प्रेम के दिये जलायेंगे।
ह्रदय से प्रस्फ़ुटित होने वाला,
वह अक्षय प्रकाश,
एक घर को नहीं,
घरों को प्रकाशित करेगा,
वह दिन आज नहीं,
तो कल अवश्य आयेगा।
४ नवम्बर २००२

4 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Kavita purani zaroor hai par bhav aise hain....Jo sada prasangik rahengen.... aapko bhi diwali ki Shubhkamnayen.....

कथाकार said...

धन्यवाद मोनिका जी

RockStar said...

wish u a happy diwali and happy new year

Hitesh The Depandable said...

Happy Diwali
wishing u a prosperous diwali