कागज के उजले पन्नों पर, इतिहास पुराना लिखता हुं।
घनघोर तमस के बीच पुन:, फ़िर नया तराना लिखता हुं।।१
भुजदण्डों में शक्ति नयी भर, पर्वत को आज हिलाता हुं।
चक्रव्युह को तोड झलक में, पथ अपना स्वंय बनाता हुं।।२
इस बुझती चिंगारी से, लंका में में आग लगाता हुं।
जंग लगी जंजीर तोड, फ़िर नयी क्रांति मैं लाता हुं।।३
आसमान के तारे तोडुं, पत्थर को पिघलाता हुं।
घनघोर तमस के बीच पुन:, फ़िर नया तराना गाता हुं।।४
तूफ़ानों के बीच आज मैं, नाव अकेले खेता हुं।
सागर की उडती लहरों से, हंस-हंस के टक्कर लेता हुं।।५
अंगारे भर इस मुठ्ठी में, काल को आज चिढाता हुं।
नहीं असंभव जग में कुछ, आओ तुम्हें दिखलाता हुं।।६
फ़ूल पडें या बिजली गिरती, ग्रहण लगे या धरती हिलती।
बाधाओं पर आज विजय कर, नया गीत मैं गाता हुं।।७
घनघोर तमस के बीच पुन:, फ़िर नया सवेरा लाता हुं।।
नव पंखों से नयी राह पर, इतिहास पुन: दुहराता हुं।
वीरों की इस वसुन्धरा में, अध्याय नया लिख जाता हुं।।८
आशाओं के दीप जलाकर, अंधियारे में चलता हुं।
वह सुबह कभी तो आयेगी, विश्वास प्रबल मैं रखता हुं॥९
क्रूर काल के कुटिल भाल पर, नयी कथा नित बुनता हुं।
अंतस की ये व्यथा त्याग, मुस्कान नयी फ़िर धरता हुं।।१०
श्रम के मोती पास अगर हों, मिट्टी में सोना उगता है।
मरु भूमि में जल क्या है, सागर में सेतु बंधता है।।११
मन में हो विश्वास अटल तो, जग को झुकना पडता है।
अंधियारे के बीच से ही सूरज नभ में चढता है।।१२
घनी रात्री के तोड तिमिर को, नया सवेरा लाता हुं।
घनघोर तमस के बीच पुन: फ़िर नया तराना गाता हुं।।१३
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10 comments:
good1
ur r a gud writer..........
"Shyam Narayan Pandey" ki yaad aa gayi yeh kavita padhkar....bahut sundar..
RIB4Google786I liked it very much, very Inspiring! High school ke Hindi kaksh ki yaadein taaza kar di....
@ मेघा: धन्यवाद
@ अनुराग: अनुराग भाई, आपकी तुलना के लिये धन्यवाद, लेकिन कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली ;)
@ राजीव: धन्यवाद राजीव
आपके कमेंट ही आगे बडने की प्रेरणा हैं :)
Sudhir Bhai Namaskar,
Jia sarai ka naam sun kar achha sa laga, kuch der ke liye main un palo me kho gaya jin palo me hum log kabhi jia karte the, vo room par baith kar gappe marna, shekhi bagharna adi,aur haan tumhari ye line ki "सागर में सेतु बंधता है" mujhe dhyan aa raha hai ki ye kavita main tumse pahle bhi sun chuka hoon yaad karo kaha,, Sardar Ji ke room par,,,Sardar Ji ka prasidda dialogue tha "Uncivilised person you don't know how to live in society". ha ha ha ha ha ha ha
ha ha ha ha ha
purani yaade taja ho gayin maja aa sudhir bhai.
सही कहा अखिलेश भाई आपने, सरदार जी को एक बार धमकाया भी था मैने यह कहकर कि मेरे चाचा नैनीताल हाईकोर्ट में वकील हैं। ;)
Bahut achhe sudhir ji .......keep it up.......
thanks Komal :)
if i am not wrong this the same work you shared with me on that ISD call. i point to tell you today is that even after hearing it once i liked it so potent that i am publishing it on my orkut account as : "about me": let people in my circle read this worthy shiny writer of this generation.
हा हा जुगल, बढिया है
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