Thursday 2 September 2010

दिसंबर की रात : अंतिम भाग

दिसंबर की रात : अंतिम भाग 

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अब आगे,

शायद उसके पास मन की बातें जान लेने की कोई शक्ति थी, वह बोला,


तुम ये सोच रहे हो ना कि मैं यहां कहां से आया और क्या कर रहा हुं? मेरे लिये रात में इस घने जंगल में होना कोई नयी बात नहीं है। इस बात को छोडो और तुम दोनो अपनी सोचो। इस समय यह स्थान किसी साधारण मानसिक स्थिति वाले व्यक्ति के लिये सुरक्षित नहीं है।


ऐसी क्या बात है बाबा, ये रास्ता तो हम दोनो के लिये नया नहीं है। यहां से हम लोग कई बार रात के समय गुजरे हुये हैं।


पर आज विशेष रात है, बच्चा। और अब तुम दोनो यहां से अभी तो नहीं निकल सकते हो। यदि तुम दोनो सुरक्षित रहना चाहते हो तो अब मेरा कहना मानो मेरा अनुसरण करो।


हम दोनो संशय की स्थिति में थे कि क्या करें, आखिर इस अनजान बाबा पर विश्वास करें या ना करें, ना जाने ये कौन है, और क्या चाहता है? निर्मल ने आंखों ही आंखों में मुझसे कहा कि नहीं इसकी मत सुन, चलते हैं। मैने बाबा से कहा,


बाबा! हमें समय पर पहुंचना है, हमें नहीं लगता कि कोई खतरा है। बस अंधेरा होने से ऐसा लग रहा है। आप कहो तो आपको भी हम हल्द्वानी तक छोड देंगे।


ऐसा कहकर हम दोनो मोटरसाईकिल की और बढे। तभी पीछे से बाबा की जोर-जोर से हंसने की आवाज आयी।
बालको, व्यर्थ की बातें सोचने में समय व्यतीत मत करो, कोशिश कर लो पर जा ना पाओगे।


हमें लगा कि ये कोई ‘हिला हुआलगता है, और हमने फ़िर से मोटरसाईकिल शुरु करने की कोशिश की पर ये तो अब हिलती ही नहीं थी। जैसे किसी अद्रश्य शक्ति ने इसे जकड लिया हो। कितने प्रयास किये परन्तु मोटरसाईकिल टस से मस नहीं हुयी। हार कर वहीं खडे हो गये।


मैने कहा था ना, अभी भी समय है मेरी बात मानो और जैसा में कहता हुं वैसा ही करते जाओ, अन्यथा बडी समस्या में फ़ंस जाओगे।


अब हमारे पास कोई और चारा नहीं था, बाबा कि बात मानने के सिवाय।


तुम दोनो अपनी मोटरसाईकिल को यहां पहाड की ओट में खडी कर दो जिससे यह दिखायी ना दे और फ़िर मेरे साथ चलो।


हमने किसी तरह मोटरसाईकिल को धकेल के एक किनारे पर लगाया और बाबा के पीछे-पीछे चल दिये। हम लोग लगभग तीस कदम चले होंगे तो रोड के किनारे एक बहुत छोटा सा मंदिर दिखा जिसके ऊपर एक छोटा सा त्रिशुल लगा हुआ था और एक लाल रंग का कपडा बंधा हुआ था। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग तीन फ़िट की रही होगी और लंबाई-चौडाई भी लगभग इतनी ही रही होगी। ये एक बहुत छोटा और पुराना मंदिर था। इसकी स्थिति से लग रहा था कि शायद ही यहां कोई पूजा करने आता होगा। तभी तान्त्रिक बाबा ने हमें निर्देश दिया,


तुम दोनो अपने जूते उतार दो और इस मंदिर से बिलकुल सट के खडे हो जाओ। और मेरी एक बात ध्यान से सुनो जब तक मैं ना कहुं इस मंदिर के पास हटना मत, और डर लगे तो इस त्रिशुल को पकड लेना। पर इस बात का ध्यान रखना कि इस मंदिर से दूर मत जाना। हां, एक बात और, बोलना कुछ मत, बस चुपचाप रहना है।


समझ में कुछ नहीं आ रहा था, कि ये क्या हो रहा है लेकिन हम दोनो मंदिर के निकट खडे हो गये।  तभी दूर कहीं से बारात के गाजे-बाजों की आवाज सुनायी दी। पर इन बाजों की आवाज कुछ अजीब सी थी। शायद ये आवाज मशकबीन (बैगपाइपर) और ढोल की थी। पहले पहाड में होने वाली शादियों में ये बाजे ही प्रयोग किये जाते थे, लेकिन आजकल इनका स्थान तो नये बाजों ने ले लिया है। बाजों की आवाज के साथ-साथ अब  हंसने, चिल्लाने की आवाजे भी आने लगी थी। इसका मतलब था कि ये बारात हमारी ओर ही चली आ रही थी। अभी तक जो डर का माहौल बना हुआ था वह थोडा सा सामान्य होने लगा था। तभी तान्त्रिक पर मेरी नजर गयी तो देखा कि वह मंदिर के निकट ही पद्मासन की स्थिति में बैठ गया था और उस बारात को ही देख रहा था। ना जाने क्यों ऐसा लगा कि वो इसी समय का इंतजार कर रहा था। इसी बीच बारात हमारे नजदीक आ गयी थी। लेकिन आश्चर्यजनक बात ये थी कि इस बारात के साथ कोई लाइट नहीं थी, बिलकुल घुप्प अंधेरे था। यद्यपि चन्द्रमा के प्रकाश में सब कुछ लगभग साफ़ दिखायी पड रहा था परन्तु ये बडी अजीब सी बात थी कि बारात जा रही हो और वो भी बिना प्रकाश की व्यवस्था करे। प्राय: गांवों में बिजली या डीजल जनरेटर नहीं होते थे, इसलिये पेट्रोमैक्स लाइट का प्रयोग किया जाता था। लेकिन ये बारात तो बडी अजीब से थी, इस आधी रात में, वो भी पैदल और बिना लाइट के, कुछ समझ में नहीं आ रहा था। बारात में लगभग पैतीस से चालीस व्यक्ति और चार-पांच बच्चे थे। सभी लोगों ने बहुत पुराने स्टाईल के से कपडे पहने हुये थे। ऐसी बारात तो आज तक नहीं देखी थी, ऐसा लग रहा था कि ना जाने कितने साल पुराने दिनों में आ गये हैं। अब ये बरात हमारे बहुत नजदीक आ पहुंची थी, पहाडी गीतों की मधुर धुनों से पूरा वातावरण उल्लास-मय हो चुका था। एक क्षण के लिये तो मैं सब कुछ भूल गया था कि हम कहां थे।


उस दल में दो तीन औरतें भी थी, जो पूरे पहाडी पोशाक में चूडियों और गहनों से सजी हुई थी। अचानक मेरी द्रष्टि उनके पैरों में पडी तो मेरे रौंगटे खडे हो गये। ऐसा द्रश्य तो आज तक कभी नहीं देखा था। वे लोग चल तो आगे की ओर रहे थे पर सभी लोगों के पैर उलटे थे। मेरी तो सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही अटक के रह गयी। शायद उनके विचित्र पैरों को निर्मल भी देख चुका था, क्योंकि वो मुझसे सट के खडा हो गया था और उसने मेरी कलाई पकड ली थी। उन उलटे पैरों को देख के तो मेरे पैर कांपने लगे थे। उनमें से दो तीन लोग हमारी तरफ़ बडने लगे। वो इस तरह से हमारी ओर दौडे चले आ रहे थे जैसे हमें भी घसीट के अपने झुंड में सम्मिलित करना चाहते हों। तभी मेरी नजरें उनसे मिली तो क्या देखता हुं कि उनकी आंखों में एक सामान्य मनुष्य की आंख की तरह सफ़ेद भाग नहीं था बस काला दिख रहा था।


हमारी स्थिति तो ऐसी हो गयी थी कि एक तरफ़ पहाड और दूसरी तरफ़ खायी, भाग भी नहीं सकते थे। तभी याद आया कि बाबा ने कहा था कि त्रिशूल को पकड लेना। मरते क्या ना करते, हम दोनो ने दोनो हाथों से उस त्रिशूल को पकड लिया, और मन ही मन हनुमान चालीसा पडने लगे। लेकिन वो लोग तो अभी भी हमारी तरफ़ बड रहे थे। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, मन कर रहा था कि इस बाबा को मार डाले, जिसने हमें रोका वरना ना हम यहां रुकते और ना ये नौबत आती, पता  नहीं कहां फ़ंस गये। बाबा,  तभी ध्यान आया कि बाबा का क्या हाल है, जहां बाबा बैठा था वहां तो अब कोई नहीं था। मन में बाबा के नाम पर कई गालियां आयी कि, साला ना जाने कहां भाग गया और हमें यहां छोड गया।

          
अब तो बस हम दोनो जोर जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे, और वो भी डर के मारे सहीं नहीं निकल रही थी। ‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’ से आगे की लाईन तो याद ही नहीं आ रही थी, सो इसी पंक्ति को बार बार रटे जा रहे थे। सुना था कि चुडैलों के पांव उल्टे होते हैं, पर देखा कभी नहीं था, पर आज देख भी लिया तो लग रहा था कि किसी को बताने के काबिल नहीं रहेंगे। इसी बीच वो जो दो-तीन लोग हमारी तरफ़ आ रहे थे, वो लगभग पांच मीटर की दूरी पर अचानक रुक गये, लगा कि जैसे कैसे किसी अद्रश्य शक्ति ने उन्हें रोक दिया हो। जब लगा कि वो हमारे और निकट नहीं आ सकते तो वे लोग बिना कुछ बोले केवल हाथ के इशारों से हमें अपनी और बुलाने लगे। शायद मंदिर के पास वो लोग नहीं आ सकते होंगे। उधर बारात का दल रोड के बिलकुल किनारे पर खडा हो गया था अब लगभग हर एक बाराती बडी जोर से नाचने लगा था और ये जो हमें बुला रहे थे, ये भी नाचते-नाचते उसी झुंड में जा कर मिल गये। हमने थोडी चैन की सांस ली कि चलो ये तो गये। तभी क्या देखते हैं कि वो बाबा भी उस भीड में बारातियों के साथ नाचने में लगा है। समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है?
अचानक बारातियों के भीड ने फ़िर से चलना शुरु कर दिया। बाजे और ढोल की धुन भी अब तीव्र हो चुकी थी और उसी अनुपात में न्रत्य की गति भी तीव्र हो गयी। तभी क्या देखा कि ये भीड रोड में से खाई की ओर चलने लगी थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे इन्हें कुछ दिखायी नहीं दे रहा हो। 


और ये क्या, ये तो सभी नाचते नाचते खाई में गिरने लगे थे। और कुछ ही क्षणों में सारे के सारे बाराती सैकडों फ़ीट गहरी खायी में गिरने लगे थे। ऐसा लगा रहा जैसे उन्हें कोई खींच रहा हो। मेरा दिल तो धक्क सा रह गया, ये बडा डरावना द्रश्य हो चुका था। क्षण भर पहले जो उल्लास का वातावरण था, उसे नीचें घाटी से आती चीख पुकारों ने अत्यधिक डरावना बना दिया था। सारे के सारे बाराती नीचे खाई में गिर चुके थे और अब वातावरण में उनका करुण क्रन्दन गूंज रहा था। मुझे तो ऐसा लग रहा था कि चक्कर खा के मैं अभी गिर पढुंगा। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, एक बार मन करा कि लोगों को बचायें पर अगले ही पल विचार आया कि वास्तव में कोई घायल हुआ भी है या ये कुछ और है। 

तभी बाबा की आवाज गूजीं,


सावधान! उनमें से कोई भी घायल या मरा नहीं है, वो सब तो आज से पैंतीस साल पहले ही मर चुके हैं। ये जो चीखने-पुकारनें कि आवाजें तो इसलिये हैं कि कोई उन्हें बचाने जाये और उसको भी वो लोग नीचे खाई में खींच लें और अपने मैं मिला लें.


यह सुनकर तो मेरे रोंगटे खडे हो गये, क्योंकि एक पल पहले मेरे मन में विचार आया था कि कम से कम उन्हें बचाने कि कोशिश तो कि जाय। पर अब तो नीचे खायी में देखने की कल्पना से भी रोम-रोम कांप रहा था।
ये चीखने पुकारने का सिलसिला लगभग दो घन्टे तक लगातार चलता रहा। इस बीच बाबा ने हमें इस घटना के बारे में विस्तार से बताया,


आज से लगभग पैंतीस साल पहले इसी रात एक बारात भुजियाघाट के नीचे किसी गांव से नैनीताल के लिये रवाना हुई थी। उन दिनों कारें हर किसी के पास नहीं होती थी इसलिये दूल्हा-दुल्हन भी बारात की बस में ही बैठ के जाते थे। लेकिन इस जगह पर आ कर बस खाई में गिर गयी थी और उस दु्र्घटना में दूल्हा और सारे बाराती मारे गये थे। रात का समय था और यह स्थान भी निर्जन था इसलिये रात भर किसी को इस दुर्घटना के बारे में पता भी नहीं चल सका। घटना में घायल लोग रात भर मदद के लिये चीखते पुकारते ही मर गये थे। आने वाले दिनों में जब ढूंढ खोज हुई तो इस बारे में पता चला। लेकिन सारे शव इतनी क्षत-विक्षत अवस्था में थे कि उन सब को यहीं खाई में बिना किसी कर्मकांड के सामूहिक रूप से जला दिया गया।  इस कारण उन सभी की आत्माएं मुक्त नहीं हो पायी और हमेशा के लिये यहीं की हो कर रही गयी। उस दुर्घटना में केवल एक दस साल का बच्चा बच गया था और वो मैं हुं। आज भी मुझे याद है वो दर्दनाक घटना, उस बारात में मेरे पिता जी, चाचा, ताऊजी और मेरा बडा भाई भी था। आज में फ़िर से उन बारातियों के साथ नाच रहा था क्योंको वो सब मेरे घर वाले थे, उनके लिये तो समय आज से पैंतीस साल पहले रुक गया था पर मैं आज पैंतालीस साल का हो चुका हुं। आज में पैंतीस साल की बाद उन सब को फ़िर से देख सका, जिनके लिये में पिछले पैंतीस साल तडपा था। लेकिन ये उन लोगों का भाग्य और कर्मों का फ़ल है जिसके कारण वो सब आज भी प्रेत योनि में हैं। आस पास के गांव वाले लोग इस घटना से परिचित हैं इसलिये रात के समय कोई भी यहां से नहीं गुजरता है, विशेषकर दिसंबर की पू्र्णिमा वाली रात को, इसीलिये गांव वालों ने यहां पर ये मंदिर भी बना दिया हैम जिसने आज तु्म्हारी जान बचायी। 

दिन के समय लिया गया उस खाई का चित्र


फ़िर जैसे ही पौ फ़टी तो रोने की आवाजे आनी भी बंद हो गयी। सब कुछ ऐसा हो गया था कि जैसे कल रात कुछ हुआ ही ना हो। फ़िर बाबा को हमने मोटरसाईकिल से लिफ़्ट भी दी और काठगोदाम के चित्रसेन घाट पर छोडा था। जाने से पहले बाबा ने एक चेतावनी भी दी थी कि इस बात का जिक्र किसी से मत करना वरना ये शक्तियां फ़िर आपके आस-पास मंडराना शुरु कर देंगी।


इसके पहले भाग की चर्चा ब्लाग पर करने के बाद से मुझे भी ऐसा लग रहा है कि रात के समय कोई मेरे आस-पास मंडराता है। कल रात दो बजे नींद खुली तो लगा कि जैसे खिडकी पर कोई है, मैने जैसे ही खिडकी पर आ कर देखा तो क्या देखता हुं कि सामने रोड पर एक अंग्रेज बुढिया जाती हुई दिखायी दी और कुछ दूर जा कर गायब हो गयी, मुझे लगा कि नींद की वजह से ऐसा दिखा हो सकता है, लेकिन अब ये लगभ हर रात को होने लगा है। पता नहीं, लेकिन यदि इस घटना को जानने के बाद आपके साथ भी कुछ ऐसा हो तो मुझे लिखियेगा।



       




3 comments:

Anurag said...

good story....end is simply great..while reading i was assuming what will be the climax.truly speaking..to be continued.....type of climax.

Unknown said...

wow ...... interesting .
truly its amazing . keep it up .

Parul said...

oh intrstng yar.... n climax is jst grt.. keep it up ....