Tuesday 30 December 2014

कालिया गुण्डा


अभी मैं नींद में ही था कि  अचानक मुझे अपने गालों  पर कुछ गीला-गीला सा लगा, मुझे बढ़ी  असहज सी हुई और मैंने कुछ गुस्से से आँखें खोली तो क्या देखा की काली कजरारी,  बड़ी -बड़ी  आंखें मेरे बिलकुल निकट हैं और एक लम्बी सी गीली नाख मेरे चेहरे को लगातार खोद सा रही है।  उस लम्बी सी नाख से निकलने वाली नम सांस मेरे चेहरे को जल वाष्प  की एक परत से ढक दे रही थी। 

छिssss  छीछीsssssss

मैं हड़बड़ी में अचानक से आंखें खोली, और क्या देखता हूँ  कि यह  कालिया था जो मुझे अपनी गीली  नाख  से धक्के दे दे  कर जगा रहा था।   एक बार तो मन करा कि  साले को एक लात मार के भगाऊँ, पर जैसे ही मैंने उसे भगाने को लात उठायी तो वह मुझसे ज्यादा फुर्तीला निकला और बच गया।  खिसिया हट मैं मैंने उसे फिर डरा  कर भगाने का प्रयास किया पर कालिया कहाँ मानने वाला था, वो थोड़ा दूर जाकर अपने अगले दोनों पैरो पर झुककर खेलने की मुद्रा में  आ गया।  अब तक मेरी नींद  तो जा चुकी थी पर आंखें पूरी तरह खुलने को तैयार नहीं थी सो मैंने अपने गीले गाल को अपनी कमीज की बांह पर पोंछते  हुए हार मानी और लेटे-लेटे अधखुली आँखों से कालिया को नजदीक बुलाया  और कालिया फट  से मेरे नजदीक आ गया. कालिया जब भी खुश होता तो वह चाहता है कि  हम उसके सर और पीठ को प्यार से सहलाएं। मैं समझ गया था कि  कालिया अभी मुझसे यही चाहता है, सो मैंने अधखुली आँखों से नींद के झोंकों में उसके सिर और पीठ पर हाथ फेरने लगा।  वह पीठ पर कुछ भीगा हुआ था, या ना जाने उसने अपने दांतो से खुजला कर गीला हुआ था, यह सोचकर मुझे फिर से मन हुआ की भगा दूँ, पर मैं ना जाने फिर भी उसकी पीठ सहलाता रहा, शायद क्योंकि वह इतने प्यार से मुझे जगाने जो आया था।  जब आप कालिया की पीठ सहलाते तो वह आपके हाथ के दबाव के विपरीत अपनी पीठ से ऊपर की ओर जोर लगाता, जिससे वह यह अहसास दिलाता कि  उसे अच्छा अनुभव हो रहा है अतः आप उसको सहलाते रहो।  थोड़ी देर बाद  ना जाने कब कालिया चला  गया और मैं फिर से हलकी सी नींद में खो गया.

अभी मेरी आँख लगी ही थी  कि अचानक  मुझे याद आया कि  कालिया तो लगभग तीन साल पहले ही अपना जीवन पूरा कर चुका है और मैंने जिस कालिया को महसूस किया वो मात्र  एक सपना था, शायद एक मिनट का सपना। पर यह सपना भी कितना सजीव थामुझे  अंश मात्र भी यह नहीं लगा कि यह  बस एक सपना है।  कालिया तो जमीन के नीचे नमक के  ढेर में चिर निद्रा में सो रहा है, अब वह मुझे नींद  से जगाने नहीं  आयेगा।  
         चित्र: कालिया 

अम्मा जी कुत्ता पालने के पक्ष में कभी नहीं थी, फिर भी पिताजी ने चुपचाप  अपने एक जानने वाले व्यक्ति से कह दिया था कि यदि उनकी जानकारी में  कोई अच्छे कुत्ते का बच्चा हो तो ला देना।  यह व्यक्ति एक किसान था और दूर गाँव में रहता था, और गाँव में रहने वाले किसानों  के पास कुत्ते होना कोई नई बात नहीं थी।  मुझे याद नहीं पर अम्मा जी  ने कुत्ते पालने का अवश्य प्रतिरोध किया होगा, पर हम दोनों भाई इस बात से प्रसन्न थे कि  अब तो पिताजी ने कह ही दिया है और वह व्यक्ति किसी भी दिन एक पिल्ला ले ही आएगा, और एक बार आ गया तो फिर देखी जाएगी। बस चिंता इस बात की थी कि कहीं अम्मा जी पिताजी को मना ले और पिताजी  उस व्यक्ति को फ़ोन कर के कुत्ता  लाने से मना ना कर दें।  

बात आयी गयी हो गयी, एक दिन मैं स्कूल से लौटा तो देखा कि वह व्यक्ति आया हुआ हैं जिससे पिताजी ने एक पिल्ला लाने को कहा था।  मैंने भीतर के परदे से कान लगाया तो ऐसा कुछ सुनाई तो दिया कि  वह पिल्ला लाया हैं पर निश्चित नहीं हुआ।  तभी अम्मा जी  भुनभुनाती हुई अंदर आयी और बोली कि  साले से एक कुत्ता लाने को कहा था, दो ले आया, एक कुत्ता और एक कुतिया। मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ था कि  एक के बजाय दो कुत्ते आ गए हैं, मेरी तो खुशी  का ठिकाना ही नहीं रहा, थोड़ी देर में निर्मल भी स्कूल से घर लौटा तो उसे भी ये खबर सुनाई गयी कि घर में दो और कुत्ते आ गए हैं, पहले दो कुत्ते हम दोनों भाई थे, क्योंकि जब कभी भी हम दोनों भाई आपस में भिड़ते तो शुम्भ-निशुम्भ नाम के दैत्यों  के मल्ल  युद्ध सा हाहाकारी दृश्य प्रस्तुत कर देते, इस  कारण  माँ  दुर्गा तत्काल प्रभाव से हमारी अम्मा जी के रूप में अवतरित होती और हम दोनों के दैत्य रूप का उपसंहार करती।   

कुल मिलाकर घर  में दो छोटे पिल्ले  आ गए थे, काला रंग  का आलसी सा कुत्ता जिसका नाम रखा गया 'कालिया' और उसकी सफ़ेद ऊर्जा से भरी, फुर्तीली बहन को नाम दिया गया 'मोती'  दोनों लगभग एक-एक महीने की उम्र के बहुत छोटेनाजुक और सुन्दर थे. एक लकड़ी की पेटी में कुछ जूट के बोरों को बिछा के उनका बिस्तर बनाया गया। एक स्टील का कटोरा भी उनको दिया गया जिसमें उनको बारी-बारी से दूध दिया जाता था, और बाकी समय वह कटोरा उनके लिए पीने के पानी से भर दिया जाता। कालिया तो आलसी और ढीला-ढाला सा था सो ज्यादातर समय  पेटी में सोया ही मिलता, पर  मोती हमेशा पेटी से बाहर निकल कर इधर उधर घूमती हुई मिलती थी।  कालिया केवल  मूत्र विसर्जन के लिए या फिर दूध पीने के लिए ही अपनी पेटी से उठता था।  क्योंकि कालिया-मोटी दोनों बहुत छोटे  थे सो कहीं भी गंदगी कर देते थे अतः उनकी पेटी को बाहर बरामदे में ही रखा गया था, और बरामदा एक लोहे के चैनल से सुरक्षित था। 


अब हम दोनों भाइयों का काम प्रतिदिन उठते  ही कालिया-मोती  की थाह लेना होता था।  वे बेचारे एक-एक महीने के बच्चे थे सो रोज रात के अंधेरे में अकेला और चिंतित अनुभव करते होंगे, तो जैसे ही सुबह को हम उन्हें दिखाई देते वे दोनों खुशी से पागल हो जाते और हमारे पांवों में आकर लौटने लगते। शायद इसी तरह वे धीरे-धीरे सीख गए थे कि हर घनी रात के बाद सवेरा अवश्य आता है  और हमारे मालिक भी आयेंगे। जिस दिन कोई उन्हें देखने  नहीं आता  तो वे दोनों कूँ-कूँ  करके हमें बुलाते कि उठो भाई लोगों सुबह हो गयी है। 

अम्मा जी चाहे कालिया-मोती की कितनी भी शिकायतें पिताजी से करती पर  कालिया-मोती  का  ध्यान भी उतना ही रखती, शायद वे जानती थी कि बिना माँ  के बच्चों का जीवन कितना नीरस होता हैं, चाहे बच्चे मनुष्य के हों या जानवर के। उत्साह, शिकायतों, और खुशी के बीच कालिया और मोती परिवार का अभिन्न अंग बनते जा रहे थे। 

कालिया-मोती इतने छोटे थे कि वे चैनल की सुराखों से अंदर-बाहर आराम  आ-जा  सकते थे। अतः कई  सुबह वो हमें उनकी पेटी के बजाय बाहर हमारे छोटे से बागीचे  में घूमते हुए मिलते।  इस बात का यह फायदा भी था कि  कई बार वो मल-मूत्र घर से बाहर जाकर विसर्जित करते तो अम्मा जी को साफ़ नहीं करना पडता। 

 एक सुबह जब हम उठे तो देखा की कालिया पेटी में नहीं था, हमें लगा कि  शायद आस-पास ही घूम रहा होगा। दिन भर  घर के आस-पास सब जगह  देखा पर कालिया कहीं नहीं मिला। समझ में नहीं आया कि आखिर कालिया कहाँ गया, जबकि मोती तो घर में ही थी, और उदास थी, शायद उसे भी अहसास हो गया था कि  उसका भाई उसके आस-पास नहीं है।  आस-पड़ोस सब जगह पूछा गया पर कालिया का कुछ पता नहीं चला।  घर में सभी कालिया के बारे में निराश और चिन्तित थे। अब हम सुबह बाहर आते तो मोती हमें देखकर और अधिक भावुक हो जाती और हमारे आसपास ही रहती  क्योंकि अब वो अकेली पड  गयी थी।  

दिन निकलते जा रहे थे और कालिया का कहीं आता-पता नहीं था। एक दिन स्कूल में निर्मल के किसी दोस्त ने उसे बताया कि  कालिया जैसा कुत्ते का बच्चा  उसने किसी जगह घूमता हुआ देखा है। निर्मल ने घर आकर हमें यह बात बताई तो किसी को विश्वास नहीं  हुआ कि वह कालिया हो सकता था क्योंकि कालिया को खोये हुए तीन-चार दिन हो चुके थे  और वह जगह भी हमारे घर से थोड़ा दूर थी। निर्मल को कालिया के मिलने की आशा थी अतः वह अपनी स्कूल ड्रेस को बदलकर  साइकिल पर सवार हो कर कालिया की खोज में उस स्थान की और निकल गया।  हमें नहीं लगता था कि कालिया मिल पायेगा, जब तक कि निर्मल एक-डेढ़  घंटे में  कालिया को ढूंढ लाया। 

विश्वास ही नहीं हुआ कि  कालिया इतने दिन के बाद इतनी दूर जीवित मिल गया।  निर्मल को कालिया बताये गए स्थान के आसपास से एक झाड़ी के बीच मिला। कालिया कमजोर हो गया था, मुंह थोड़ा सूजा हुआ और चेहरे पर चोट के या फिर कुत्तो के काटे के छोटे-छोटे निशान भी थे. काश कालिया बोल पाता  तो हम उससे पूछते कि आखिर वो लापता कैसे हुआ।  कालिया अस्वस्थ नजर आ रहा था, क्योंकि इतने दिन से वह ना जाने कहाँ रहा और कैसे रहा। उसका गुस्सैल व्यवहार और शारीरिक हालत बता रही थी  कि उसके  पिछले तीन-चार दिन के अनुभव अच्छे नहीं रहे थे।  जब मोती  उसके पास गयी तो वह उस पर भी गुर्राने लगा, डर  के मारे मोती भी उससे दूर जा बैठी। हमें लगा कि कालिया सदमे में है और थोड़े दिनों में ठीक हो जायेगाऔर ऐसा हुआ भीधीरे-धीरे कालिया अपनी बहन के साथ फिर से घुल मिल गया और हमारे साथ भी, और उसका स्वास्थ्य भी ठीक होने लगा था. 

सुबह को जब हम बाहर निकलते तो कालिया-मोती फिर से उसी अंदाज में हमारे पास आ जाते और अपनी खुशी प्रदर्शित करते, और चीजें फिर से सामान्य हो गयी। एक सुबह हम उठे तो क्या देखा  कि कालिया-मोती जोर-जोर से लड़ रहे हैं और जब  बाहर गए तो आंखों पर भरोसा नहीं हुआ कि वहाँ तीन कुत्ते के बच्चे थे एक सफ़ेद और दो काले, एक काला और एक सफेद मिल कर तीसरे काले कुत्ते के बच्चे को काट रहे थे।  दोनों काले कुत्ते के बच्चे दिखने में बिलकुल एक जैसे थे, हमारे समझ में नहीं आया कि  आखिर दो कालिया कहाँ से आ गए।  अम्मा जी अलग परेशान कि कहाँ एक कुत्ता मुश्किल था, फिर दो, और अब तीन हो गये।  जब ध्यान से देखा तो एक काले कुत्ते के गले में  एक कपडे का धागा सा बंधा था और उस कुत्ते ने हमको पहचान लिया और हमारे पास आकर खेलने लगा।  तब सारी कहानी समझ में आयी कि असली कालिया तो ये है   

तो घटना यह हुई थीकि कालिया को कोई उठा ले गया था और उसने कालिया को अपने घर में बाँध दिया था। लगभग दस दिन कालिया उस व्यक्ति के घर में बंधा रहा और जैसे ही उसे मौक़ा मिला वह भाग कर हमारे घर  वापस लौट आया, और निर्मल जिस कालिया को ढूंढ कर लाया था वह था एक डुप्लीकेट कालिया, इसी कारण वह शुरू में ना तो वह हमें पहचान पाया और ना ही अपनी बहन मोती को।  एक दो महीने के कालिया का अपने घर वापस लौट आना अपने आप में एक आश्चर्यजनक घटना थी।   


                                    कालिया







        

3 comments:

Nirmal Tripathi said...

वाह वाह कालिया की सारी यादी पुनः मन में सजीवित हो उठी , उसकी पीठ सहलाने पर उसका आपके हाथ के दबाव के विपरीत अपनी पीठ से ऊपर की ओर जोर लगाना।
सुबह सुबह बिस्तर पर आकर ज़बरन फूं फूं कर चादर के अंदर मुह डालकर उठाना।

याद है एक् बार उसने सुबह सुबह राजेन्दर के मुह में पंजा से कपोर दिया था😅😅😅😅

Komal said...

बहुत ही सजीव चित्रन किया है तुमने . Its too difficult for me to right in hindi :P but truely very nice discription. Specially the one mentioned by Nirmal that when we caress a dog on its back it forces its back to show its affection for us. Very nice observation too :) . Good job. I too went through the memory lane with this blog of urs....

ArohiSrivastava said...

Wah!!! Kya khoob chitran hai...mere paas bhi aaj se kareeban 15 saal pehle 'jerry' naamak kutta tha...uski yaadein punah jeevit ho utni...