बात बहुत पुरानी है। एक राजा था जिसे एक मुनि ने प्रसन्न होकर जानवरों, कीट पतंगों और पक्षियों की बोली समझने का वरदान दिया था, लेकिन एक शर्त भी थी कि यदि राजा ने किसी को भी इस बारे में बताया तो राजा की उसी क्षण म्रत्यु हो जायेगी।
एक रात की बात है राजा अपनी रानी के साथ रात्री का भोजन कर रहा था, अचानक राजा ने देखा कि दो बडे चींटे (जो काले रंग के होते हैं और अंग्रेजी के ‘g’ शब्द से दिखते हैं।) राजा और रानी की थाली के बीच में घूम रहे थे। राजा को उत्सुकता हुयी कि जरा सुने की ये चींटियां क्या बात कर रही हैं। चींटा, चींटी से कह रहा था कि,
‘’ओ चींटी तूने रानी की थाली से चावल का दाना उठा कर राजा जी थाली में क्यों डाल दिया? रानी को पाप चढेगा, राजा को अपना जूठा खिलाने का।‘’
‘’हठ पगले! पति-पत्नी में जूठा खिलाने से पाप थोडी चढता है’’, प्यार बडता है, चींटी बोली।
यह सुन कर राजा को बडे जोर की हंसी आयी, और राजा अट्ठ्हास कर उठा। राजा को यह सोच कर आश्चर्य हुआ कि इतनी छोटी चींटी में भी समझ है। राजा को हंसते देख, रानी सोच में पड गयी कि क्या बात राजा को बडी हंसी आ रही है।
अरे बडा खिल खिला कर हंस रहे हैं, जरा हमें भी बताइये क्या हुआ?
नहीं रानी कुछ नहीं, बस ऐसे ही।
तो ऐसे ही हमें भी बता दीजिये हम भी थोडा हंस लेंगे, वैसे भी आपकी मां ने हमारा जीना
वैसे ही दूभर कर रखा है।
नहीं-नहीं बस ऐसे ही हंसी आ गयी थी, कुछ खास बात नहीं है।
अरे! ऐसे ही आनी है तो हमें क्यों नहीं आ रही है। सत्य कहिये आप हमें देख कर हंसे थे ना।
नहीं बिलकुल नहीं, आपको देख को मैं कैसे हंस सकता हुं।
हमें देखकर आप कभी खुश हुए भी हैं। तो जिसे देख के इतना प्रसन्न हो रहे थे, उसी का नाम बता दीजिये।
अरे कुछ भी नहीं रानी साहिबा, आप तो बस पीछे ही पड गयी हैं, कोई बात नहीं है आप
भोजन कीजिये।
अब तो ऐसे ही कहंगे। हुंह!!!
रानी नाराज हो कर खाना अधूरा छोड कर ही चली गयी। राजा का मन भी खाना खाने का नहीं करा। लेकिन राजा तो शर्त से बंधा था कि वह उसके भाषा ज्ञान के बारे में किसी को बता नहीं सकता है। आज की बात होती तो कुछ भी झूठ बोलकर बच जाता लेकिन उस समय में लोग झूठ नहीं बोलते थे, खासकर राजा या पढे लिखे व्यक्ति।
राजा अपने वस्त्र बदल जब रानी के कमरे में पहुंचे तो देखा रानी मुंह फ़ुलाये अपना मुंह दूसरी ओर कर लेटी हुयी थी। राज ने जब रानी से बात करने का प्रयास किया तो रानी भडक गयी,
सबके सामने मेरी इन्सल्ट कर दी और अब बडा प्यार जता रहे हो।
अरे रानी हमें क्षमा कर दो, पर बात ही ऐसी थी कि हम आपको नहीं बता सकते थे।
अच्छा अब ऐसी बातें भी होने लगी जो आप हमें नहीं बता सकते।
क्यों व्यर्थ हठ कर रही हैं, छोडिये बात को।
अच्छा हठ भी अब मैं ही कर रही हुं, इतनी ही बात है तो बता क्यों नहीं देते की बात क्या थी?
आप नहीं समझ पायेंगी रानी, छोडिये ना, इतनी सुंदर रात है।
हठो, छूना मत मुझे। कोई आवश्यकता नहीं है, उसी के पास जाईये जिसकी याद में इतना प्रसन्न हो रहे थे, मैं तो जिद करती हुं ना।
आप बात को गलत समझ रही हैं, ऐसी कोई बात नहीं है जैसा आप सोच रही हैं, वो तो बस छोटी सी बात थी।
अरे छोडिये जी, आपकी सारी छोटी-छोटी बातों का हमें ज्ञान है।
अरे अब तुम पुरानी बातें लेकर मत बैठ जाओ।
मुझसे बात मत करो, जब तक मुझे सच-सच नहीं बताते कि आखिर माजरा क्या है।
राजा के समझ में नही आया कि क्या करे, तो उसने सोचा कि चलो थोडी नाराजगी ही तो है, कल सुबह तक ठीक हो जायेगी। लेकिन अगली सुबह भी रानी के मुंह की सूजन कम नहीं हुई, राजा ने बातचीत का कितना प्रयास किया और कितने प्रलोभन दिये पर रानी नहीं मानी। रानी के दिमाग में शक घर कर गया था। राजा जितना समझाने का प्रयास करता बात उतनी ही बिगड जाती। रानी का हठ बडता ही गया, अपनी बात मनवाने को रानी ने खाना-पीना भी छोड दिया। एक सप्ताह हो चुका था, रानी का स्वास्थ्य भी कमजोर हो गया था। राजा के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, एक तरफ़ कुंआ और दुसरी तरफ़ खाई वाली स्थिति हो गयी थी। या तो रानी को सारी बात बता दे और अपनी म्रत्यु को आमंत्रण दे या फ़िर अपने प्राणप्रिया रानी को ऐसे ही तडपने दे। राजा ने रानी को मनाने लाख प्रयास कर दिये पर रानी तो हंसी का कारण जानना चाहती थी। आखिर थक हार के राजा ने रानी से अंतिम बार पूछा कि
रानी मैं आपको वह बात बताने को तैयार हुं, परन्तु एक बात आप जान लें इसका परिणाम बडा भयंकर होगा।
मैं मर रही हुं, इससे बुरा क्या हो सकता है। मत बताओ।
रानी, इस बात को बताने से मेरे जीवन पर संकट आ सकता है।
रानी को लगा कि राजा ब्लेकमेल करना चाह रहा है, रानी व्यंग करते हुये बोली,
राजा के प्राण को संकट? वो भी एक छोटी सी बात बताने पर? फ़िर तो मेरा ही प्राण त्यागना उचित है। अपनी बात अपने पास ही रखिये, मेरे लिये थोडा सा विष मंगा दीजिये, अब तो जीने का मन ही नहीं है।
राजा के समझ में नही आ रहा था कि एक छोटी से बात के लिये रानी कैसे अपने प्राण दे सकती है। उलट राजा ही इमोसनली ब्लेकमेल हो गया और राजा ने निश्चय किया कि वह रानी को सब बता देगा। साथ ही उसने सोचा कि जब मरना ही है तो किसी तीर्थ स्थान में जाकर प्राण त्यागने में ही भलाई है, कम से कम कुछ सद्गति हो होगी।
अंतत: राजा ने हार मान ही ली, उसने रानी को बताया कि वह वह बात बताने को तैयार है जिसके कारण उसे हंसी आयी थी। रानी मन ही मन खुश तो बहुत हुई कि आखिर वह जीत गयी पर पहले रानी ने थोडा एटिट्युड दिखाया। राजा ने शर्त ये रखी कि वह बात हरिद्वार चल कर बतायेगा। रानी और खुश कि चलो यात्रा भी हो जायेगी, कब से कहीं जाने का अवसर भी नहीं मिला।
अंतत: राजा ने अपने सारे हिसाब किताब मंत्रियों को समझाकर, रानी को साथ लेकर यात्रा प्रारंभ की। पुराने समय में यात्राओं में लंबा समय लग जाता था अत: बीच-बीच में पडाव डाल के यात्रा पूरी की जाती थी। ऐसे ही राजा और रानी के दल ने यात्रा के दौरान पडाव डाला हुआ था। एक बडे खेत के किनारे राजा खुले में शांत बैठे प्रकति का आनंद ले रहे थ। रानी भी कुछ दूर में ही बैठी थी, तभी राजा को थोडी दूर पर एक बकरा और बकरी दिखायी दिये। उन्हे देखकर राजा को फ़िर उत्सुकता हुयी कि देखें ये दोनो क्या बात कर रहे हैं। बकरा और बकरी दोनो रोमांटिक किस्म की बातें कर रही थे, राजा को सुनने में आनंद आ रहा था। वार्तालाप कुछ ऐसे था,
मेरी बकरी, तेरी आंखों में तो मुझे अपनी ही शक्ल दिखायी देती है। ऐसा लगता है कि तुझे जमीं पर बुलाया गया है मेरे लिये।
मर जांवा मेरे बकरु, मुझे तो तु्झे देखते ही पहली नजर में प्यार हो गया था। अच्छा एक बात बता तु मेरे लिये क्या कर सकता है?
तेरे लिये तो मैं कुछ भी कर सकता हुं, मेरी जान, तू कह तो सही, तू कहे तो तेरे लिये आसमान से तारे तोड लाउं।
अरे नहीं, आज मेरा मन हरी-हरी घास खाने का मन कर रहा है, मेरे लिये ला ना।
ले अभी ले, कौन सी वाली, नदी के किनारे वाली या फ़िर उस घनी गुफ़ा के पीछे से, तू बता तुझे कौन सी पसंद है।
अरे नहीं मेरे लिये तु वो घास ला जो कुएं के अंदर उग रही है, वो घास आज तक किसी बकरी ने नहीं खायी है। मेरी उस मोटी बकरी से शर्त से लगी है कि तु मेरे लिये वह घास ला सकता है। देख आज मेरी इज्जत का सवाल है बकरु, यदि तूने मना कर दिया तो आज में उस मुटिया से हार जाउंगी।
राजा यह वार्तालाप सुन कर मन ही मन हंस रहा था कि देखो जरा कैसे अपनी शर्त मनवा रही है। तभी बकरा बोला,
अरे जानु, कुछ और मांग ले, कुएं के अंदर तो मैं जा सकता हुं पर बाहर कैसे आउंगा। मैं कोई मनुष्य तो नहीं हुं।
अच्छा प्यार करते समय तो डायलाग बडे आदमियों वाले मारते हों, बडा कह रहे थे कि आसमान से तारे तोड लाउंगा। अब लाओ।
अरे प्यारी बकरी बात तो समझ, ऐसा कैसे संभव हैं, मैं घायल हो जाउंगा।
मैं कुछ नहीं जानती बकरे, अगर तु ला सकता है तो ला, वरना हमारा ब्रेकअप निश्चित है, मेरी अपनी भी कुछ ईज्जत है।
ऐसा सुन कर बकरे को मन ही मन तो बहुत क्रोध आया, पर फ़िर भी बोला,
चल दिखा कहां पर है, मैं लाता हुं।
कुंआ नजदीक ही था, बकरी बकरे तो लेकर कुंऐ की मुंडेर पर पहुंची और दिखाने लगी कि वो वाली। बकरे ने बकरी को एक जोर का धक्का दिया और बकरी कुएं के अंदर गिर गयी, तब बकरा बोला,
साली तू समझती क्या है अपनी आप को, तेरे लिये मैं कुएं में घुसकर घास लाऊं। तूने मुझे क्या ये राजा समझा हुआ है जो अपनी पत्नी की जिद के आगे जान देने पर तुला है। खा अब जी भर के घास।
राजा ने जब ये सुना पहले तो मुस्कुराया और फ़िर शर्म से पानी-पानी हो गया। उसी क्षण उठा और रानी से बोला की तुझे घर चलना है कि नहीं। रानी बोली,
पहले तुम्हारे हंसने का कारण तो बताओ?
राजा ने गुस्से से कहा, ‘हफ़्फ़!!! (जैसे लालू करता है कभी कभी) चलना है तो चल नहीं तो यहीं रह'।
रानी भी समझ गयी कि अब दाल गलने वाली नही है, तो बोली,
अरे आप तो नाराज हो गये, मैं तो मजाक कर रही थी। चलिये घर चलते हैं।
नोट: पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इस कहानी को केवल मनोरंजन के लिये पढें, इस का किसी वास्तविक घटना से कोई संबन्ध नहीं है और ना ही ये लेखक के अपने विचार हैं।
11 comments:
बहुत पुरानी है, लेकिन बढ़िया है, खरी है, सोने पे सुहागा ये कि आपने कुछ अंग्रेजी के शब्द प्रयोग कर आज के लोगों को जल्दी समझ में आने लायक कर दिया है..
old story...... bt nice one.... padh k acha laga......
Thanks Abhishek,Indian Citizen and Parul :)
Bahut sundar yaar............:)
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This story is good
aap ki kahani bahut acchi Hai Main Bhi Ek Kahani ka banana Chahta Hoon
Nice
nice story
apke kahane ne dil chu liya
Very nice story
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