Thursday, 26 August 2010

ढाका भाग 3







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पतंगबाजी में हुयी हार ढाका के लिये एक नयी चुनौती क्योंकि ढाका में जिद्दीपन था, जीवट था, कभी हार ना मानने का। जिस बात को एक बार ढाका सोच लेता उसे तो हर कीमत पर उसें पूरा करना होता था। एक बार जो उसने हमारे क्षेत्र के सर्वश्रेष्ठ पतंगबाज लालू हराने की ठान ली तो ठान ली। अब तो चाहे कुछ भी करना पडे, साम, दाम, दंड, या फ़िर भेद, बस लालू को हराना था। विजय के मार्ग में ढाका का नौसीखिया पतंगबाज होना उतनी बडी समस्या नहीं थी, जितना कि लालू का सबसे ज्यादा अनुभवी पतंगबाज होना थी। लेकिन कहते हैं ना कि आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। ढाका ने भी एक नयी तरकीब खोज निकाली थी। अगली शाम को जब हम मिले तो ढाका का चेहरे मुस्कान और आत्मविश्वास से भरा हुआ लगा। मैने पूछा,


पेंच करेगा क्या आज?


बेटे, आज तो लालू की कन्नी कटेगी। देखियो आज ढाका डान क्या करता हैगा। 


(कन्नी विशेष प्रकार से बांधी गयी वह गांठ होती है जो मांझे और पतंग को आपस में जोडती है। पतंग की कन्नी, पतंगबाजी में एक कमजोर स्थान होता है, क्योंकि कन्नी सामान्यत: सद्दी [साधारण डोर] से बांधी जाती है। जबकि पेंच लडाने के किये मांझे [धार वाली डोर] को कन्नी और सद्दी बीच में बांधा जाता है। अत: पतंग की कन्नी जो ठीक पतंग के पास होती है उस पर आक्रमण करके विपक्षी पतंगबाज पतंग को बडी आसानी से काट सकता है।)
  
यह कहते हुए ढाका ने फ़िर वही चिर-परिचित मुस्कान बिखेरी और साथ में एक आंख बंद की तो मैं समझ गया कि आज तो पक्का कुछ ना कुछ होने वाला है। ढाका की योजना थी कि हम मांझे और पतंग की कन्नी के मध्य में तांबे का पतला तार बांधकर उडायेंगे। इससे यह होना था कि जब लालू और ढाका की पतंगें आसमान में एक दूसरे से उलझती तो लालू की पतंग का मांझा, ढाका की पतंग में बंधे तार के सम्पर्क में आयेगा। मांझा चाहे कितना भी तेज क्यों ना हो, या फ़िर पतंगबाज कितना भी दक्ष क्यों ना हो, मांझे से तांबे के तार को काटना तो असंभव था। इसलिये इस बार तो हमारी जीत लगभ सुनिश्चित ही थी। हां थोडी सम्भावना हमारे हारने की भी थी। वह तब, कि जब लालू को हमारी नयी योजना के बारे में पता चल जाय, और वह या तो हमारी पतंग की कन्नी में आक्रमण करे या फ़िर उस स्थान पर हमला करे जहां से हमारा तार खत्म हो जाय और मांझा शुरु हो। इसलिये लालू ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि,


इंस्पैक्टर, नजर रखियो, पतंग उडाने बीच कोई हमारे आस पास नहीं खडा होना चाहिये हैगा। यह बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिये हैगी कि हम कौन सा मांझा (तार) लगा रहे हैंगे।


ढाका! लेकिन यार वो 'टेंटु' तो अपनी साईड है। वो तो हमारे साथ ही खडा होता है, उसने कहीं किसी को बता दिया दो। 


आने दे टेंटु को, उसका इलाज तो अभी करते हैंगे। 


'टेंटु', उर्फ़ अभिजीत, भी हमारी कालोनी में रहता था। नाम तो उसका अभिजीत सक्सेना था पर ढाका ने उसका नाम टेंटु रख दिया था। वैसे ढाका ने 'टेंटु' नाम बिलकुल सही रखा था। छोटी सी बात हुई नहीं कि अभिजीत टेंटुआ फ़ाड के रोना शुरु कर देता था। यहां अभिजीत ने टेंटुआ फ़ाडा, और उधर से उसकी मां का हम सब पर चिल्लाना शुरु, कि मेरे बेटे को मार रहे हो, परेशान कर रहे हो। तब मन करता कि साले का टेंटुआ ही दबा दो। 



वैसे टेंटु के रोने का भी वैसे एक स्टाइल था। जैसे कभी उसे किसी ने परेशान किया तो पहले तो वो रोनी सी सूरत बनाता और सुन्न हो जाता, फ़िर यदि हमने उसे चिढाना जारी रखा तो फ़िर उसका मुंह टेडा होता फ़िर आंसु निकलने शुरु होते  और फ़िर आंसुओं की धारा बह निकलती। फ़िर लगभग दस सेकेंड के बाद उसके गले से रोने की वो आवाज निकलती कि लगे कहीं फ़ायर अलार्म बज उठा हो। मुझे तो टेंटु का रोना और बादलों में बिजली चमकना एक सी घटना लगता था। आपने देखा होगा कि जब बारिश के दौरान बादल कडकते हैं, तो बिजली गिरनी की आवाज, बिजली के आसमान में चमकने के थोडी देर बाद होती है। ठीक ऐसा ही टेंटु के रोने के दौरान होता था, उसकी शक्ल और आंसुओं को देख के पता चल जाता था कि अब टेंटु का सायरन शुरु होने वाला है। इस समय अंतराल का प्रयोग हम तितर-बितर होने के लिये करते थे। जैसे ही टेंटु का सायरन सुन उसकी मां अपनी छत में आकर हम पर चिल्लाना शुरु करती तब तक  हम टेंटु से दूर इधर-उधर दूर ऐसे जा खडे होते कि जैसे हमने तो कुछ किया ही ना हो। लेकिन टेंटु तो वहीं होता था ना, वह शिकायत करना शुरु कर देता कि ये परेशान कर रहा है, वो परेशान कर रहा है। फ़िर टेंटु की मां हम पर अपना टेंटुआ फ़ाडना शुरु कर देती। ये टेंटु की प्रतिदिन की कहानी होती थी। 



एक दिन ढाका को एक नया तरीका सूझा, अब जैसे ही टेंटु के आंसु दिखायी देते, ढाका अपने हाथों से टेंटु का मुंह कस के बंद कर देता। टेंटु रोता तो था पर आवाज उसकी मां तक नहीं जा पाती थी। ढाका को भी यह करने में आनंद आता और हमारी समस्या भी समाप्त हो गयी थी। शुरु-शुरु में तो यह तरकीब बडी सफ़ल रही लेकिन थोडे दिनों में टेंटु ने इसका तोड खोज निकाला। वह यह था कि जैसे ही ढाका टेंटु का मुंह दबाता, टेंटु अपने दांत ढाका की हथेली में चुभा देता, अत: हारकर ढाका को हाथ हठाना ही पडता। मुंह से हाथ हठते ही टेंटु अपनी रोने की चीख को और ऊंचा(amplify) कर देता। लेकिन ढाका भी कब हार मानने वाला थाअबकी बार उसने बडा कारगर उपाय सोचा था। उपाय यह था कि जैसे ही टेंटु रोने वाला होता तो सारे बच्चे हल्ला-मचाना शुरु कर देते, जिससे टेंटु की रोने की आवाज दब के रह जाती। टेंटु और जोर से चिल्लाता तो सारे बच्चे भी शोर बडा देते, अब टेंटु की मां तक टेंटु की आवाज नहीं पहुंच पाती थी और थक हार कर टेंटु थोडी देर में चुप हो जाता। यद्यपि टेंटु ने टेंटुआ फ़ाडना तो कम कर दिया था पर नाम उसका टेंटु ही पड गया था।           



तो जब मैने ढाका से अपनी शंका व्यक्त की कि कहीं टेंटू हमारा तार वाला राज ना खोल दे, तो ढाका ने निश्चितता दिखाते हुए कहा की उसका उपाय तो वह कर देगा। फ़िर हम दोनो, ढाका के द्वारा लाये गये तांबे के तार को अपने चर्खी पर लपेटने लगे। मुझे तो इस बात का आश्चर्य हो रहा था कि ढाका इतना सारा तार लाया कहां से। इस तार में कुछ-कुछ दूरी पर गांठे लगी हुयी थी। इससे समझा जा सकता था कि तार के लंबे लंबे टुकडों को आपस में जोडा गया था। अब हम पेंच लडाने के लिये पूरी तरह तैयार थे। तभी टेंटु अपने घर से निकल कर हमारी तरफ़ आता हुआ दिखायी दिया। हमारे पास आकर वह बोला,


त्यों बे ढाता, पेंत करेगा लालू थे आज।  

(मैं यह बात बताना भूल गया था कि टेंटु बोलने में तुतलाता था।)      


चुप बे टेंटु, पहले ये बता तु हमारी साईड हैगा या लालू की साईड। 


तेली साईड हुं, पल तेली पतंग तो लोज कत जाती है।


अबे चुप र साले, पहले ही टोक मार रिया हैगा। देखते जा आ पतंग किसकी कटती हैगी।  


ढाका का टोक मारने से मतलब था कि शुरुआत में ही अशुभ शब्द कहना। फ़िर ढाका आगे बोला, 


सुन बेटा टेंटु, तु हमारी साईड जभी होगा जब तु विद्या-रानी की कसम खायेगा कि तु किसी को नहीं बतायेगा कि हम कैसे पतंग काटते हैंगे। तभी हम तुझे अपनी साईड में रखेंगे। 


त्यों बे, मुझे फ़ेल तलायेगा क्या? मैं विद्या-लानी ती तसम नहीं ताउंगा। 


हमारी साईड रहना हैगा तो कसम भी खानी पडती हैगी।


तल ठीत है, विद्या-लानी ती तसम तिसी को नहीं बताउंगा। 


सोच ले बे टेंटु नहीं तो फ़ेल हो जायेगा, मैने कहा। 


अबे थाली तो थाली, अब बताओ। लालू ती पतंग तैसे तातोगे।  


फ़िर हमने सारी कहानी टेंटु को भी बतायी। पूरी योजना सुन के टेंटु बोला, 

अले याल, आइदिया तो बहुत बलिया है, आत तो लालू ती पतंग कत ही दायेगी।


यह सुनकर ढाका और मेरा आत्मविश्व्वास एक कदम और बढ गया था, क्योंक टेंटु ने भी हमारी योजना को सफ़ल घोषित कर दिया था। बस अब तो पेंच होने का इंतजार था। उस शाम को फ़िर ढाका ने सबके सामने लालू को अंतिम मुकाबले की चुनौती दी और यह भी कहा कि यदि वह हार गया तो फ़िर कभी पतंग नहीं उडायेगा। हालांकि मुझे ढाका की योजना पर भरोसा था फ़िर भी मुझे डर सा लग रहा था कि कहीं आज भी हार का सामन ना करना पडे। लेकिन फ़िर पतंगो के पेंच शुरु हुए। पहले तो बडी देर तक आसमान में पतंगे एक दूसरे से बचते रही। फ़िर एक बार जैसे ही पतंगें आपस में फ़ंसी, चारों ओर सन्नाटा सा चा गया। मेरी भी ह्रदय गति बढ गयी थी। लेकिन तभी आश्चर्यजनक रूप से पतंगें अलग भी हो गयी, ऐसा कभी-कभी ही होता है कि पतंगें आपस में फ़ंसने के बाद बिना कटे अलग-अलग हो जायें। जैसे ही पतंगें अलग हुयी वातावरण में एक हर्षध्वनि सुनायी दी। बडी रोमांचक स्थिति हो गयी थी। सारे दर्शक भी दो भागों में बंट गये थे, लेकिन बहुमत लालू की तरफ़ था। लालू अपनी पतंग को बडी सावधानी से ढाका की पतंग के इर्द-गिर्द घुमा रहा था। इस बडे मुकाबले में कोई भी जोखिम लेने को तैयार नहीं था, अत: पेंच करने में देरी हो रही थी। तभी टेंटु लालू को ललकारता हुआ सा बोला,



दरपोक तुत्ते, पतंग आगे बला।   



वैसे ऐसे मामलों में ढाका भी चुप नहीं रहता था, परन्तु आज वो अपना ध्यान बस पतंग में रखना चाहता था, इसलिये वो कुछ नहीं बोला। हमें ज्यादा देर इंतजार नहीं करना पडा, दोनों पतंगें फ़िर से फ़ंस गयी। फ़िर एक खींचा-तानी सी आसमान में दिखायी देने लगी। कभी दोनों पतंगे हमारी तरफ़ की ओर आ जाती, तो हमारी तरफ़ वाले बच्चे चिल्लाने लगते, और कभी उस ओर जाने लगती तो वो उनकी तरफ़ शोर बढ जाता। वो तो ढाका ने तार लगाया हुआ था वरना अब तक तो हमारी पतंग कब की शहीद हो चुकी होती। अभी एक मिनट भी नहीं हुआ होगा, और पतंगें अभी फ़ंसी ही थी तो क्या देखा कि लालू की और शन्नाटा छा गया था। हम लोगों ने उसकी ओर मुड के देखा तो लालू का हाथ पतंग नहीं उडा रहा था बल्कि वो तो अपनी चर्खी लपेटने लग गया था। इसका मतलब उसकी पतंग कट चुकी थी।  हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, हम सब पूरे जोर से चिल्ला उठे। लेकिन तभी क्या देखते हैं कि लालू की पतंग अभी भी आसमान में उड रही है, वह एक कटी पतंग की तरह नीचे नहीं आ रही थी। पतंग लूटने वाले बच्चों का दल निराशा से भर उठा था क्योंकि पतंग कटने की बाद भी आसमान में उड रही थी जो की पतंग लूटेरों के लिये शुभ-संकेत नहीं था। 



हुआ ये था की लालू की पतंग की डोर हमारी पतंग में लगे तार की गांठ में फ़ंस के रह गयी थी। अब दोनों पतंगों को एक ही डोर से ढाका उडा रहा था। यह देखकर सब देखने वालों ने दांतो तले उंगली दबा ली, क्योकि पतंग काटना तो एक बात होती है पर विपक्षी पतंग को काटकर अपनी पतंग में उलझा कर ले आना बडे-बडे पतंगबाजों की भी नहीं आता है। ऐसी घटना को पतंगबाजी में ‘पतंग लुप्झाना’ कहते हैं। हमारी खुशी तो दोगुनी हो चुकी थी। ढाका ने भी विपक्षी खेमें की ओर मुडकर, एक अश्लील इशारा करते हुए, टार्जन की सी आवाज निकाल कर बडे जोर से विजयनाद किया। हम जीत चुके थे वह भी समग्र रूप से, लालू की तो जमानत भी जब्त हो चुकी थी।  



अब ढाका दोनों पतंगो को सावधानी से नीचे उतारने लगा और मैंने चर्खी पर डोर को लपेटना शुरु किया। अब लालू की पतंग रूपी जीत की निशानी को सुरक्षित अपने कब्जे में लेना अंतिम कार्य था। दोनों पतंगें अब जमीन से थोडी ही दूर थी कि अचानक मुझे लगा कि मुझे किसी ने बडी जोर से ढाका की ओर धक्का दिया। और मैं ढाका के उपर जा गिरा हुं। को अद्रश्य सी शक्ति मुझे खींचे जा रही है।ढाका भी जोर जोर से चिल्ला रहा था।  तभी अंतिम झटका लगा और, मैं और ढाका दोनों एक बडे जोर के धक्के से बहुत दूर जा गिरे। मेरा तो दिमाग चकरा रहा था और आंखे भी बंद सी होने लगी थी। मेरे नजदीक पडे हुये ढाका का भी यही हाल था। ऐसा लग रहा था कि शरीर में कुछ भी शक्ति नहीं रही। बेहोश होने से पहले मैने टेंटु को बदहवाश हालत में चिल्लाते हुए सुना कि,


धाका औल इंस्पैत्तर को तरेन्त लग गया।


इसके बाद जब मुझे होश आया तो मुझे इतना याद है कि मैं निढाल हो कर अस्पताल के बिस्तर में पडा हुआ था। ऐसा अनुभव हो रहा था कि जैसे किसी ने पकड के मुझे झकझोर दिया होअपना सिर या हाथ हिलाने की सामर्थ भी मुझमें नहीं थी। मेरा मस्तिष्क तो अभी तक भन्ना रहा था।  मैं बस लेटेलेटेआसपास खडे  लोगों की आवाज सुन पा रहा था, और बीच बीच में कभी फ़िनाईल और दवाइयों की मिश्रित गंध मेरे नाक तक पहुंच रही थी। तभी शायद  डाक्टर साहब कमरे में आये तो नर्स मेरी ओर लपकते हुये उनसे बोली 

डाक्टर साबये दो लडके पतंग उडा रहे थे और पतंग  बिजली के पोल में छु गयी और दोनो को बडे जोर का करंट लगा है। एक लडके को ज्यादा जोर का झटका लगा है,  चेहरा भी काला पड चुका है और बाल भी अभी तक खडे हैं। 

जैसे ही नर्स ये की बात मेरे कानों में गयीमेरी तो रुलाई ही फ़ूट पडी। मुझे  ढाका का चेहरा याद  या और लगा कि अब मैं भी वैसा ही दिखने लगुंगावो भी हमेशा के लिये।  मैं स्वय़ं को रोक नहीं पाया और मेरी आंखों से गंगा जमुना बहने लगी। मेरी आंखे बंद थी पर मैं अनुभव कर सकता था कि आंसू मेरी आंखों से बहकरकान के पीछे से होते हुए मेरे गर्दन तक पहुंच रहे थे। तभी डाक्टर साहब की आवाज सुनाई दी,


अब कैसा महसूस कर रहे हो?


मुझे लगा कि डाक्टर साहब मुझसे पूछ रहे हैं, और मैं कुछ बोलता इससे पहले ही ढाका कि आवाज कानों में पडी,


डाक्टर साबचक्कर से आरे हैंगेबांकी सब ठीक हैपर आप पहले इंस्पेक्टर साब को तो देख लो। 


इंस्पेक्टर, ये इंस्पेक्टर कौन है भाई
(डाक्टर साहब थोडा सा आश्चर्य चकित होकर इधर-उधर देखते हुये बोले)


अरे डाक्टर साब! आप इधर उधर कहां देख रहे हैंगे, ये बगल में तो लेटे पडे हैंगे। इनका नाम हैगा इंस्पेक्टर 


ढाका ने अपने बिस्तर से उठते हुए मेरी ओर इशारा करके डाक्टर को बताया।


लेटे रहोलेटे-लेटे बताओ,  अरे इनकी चिन्ता मत करो, तुम अपने चिन्ता करो। अच्छा अगर ये इंस्पेक्टर हैंगे तो आप कौन साब हैंगे? 
(डाक्टर साहब भी मजाक के अंदाज में बोले।) 


अपुन तो ढाका  हैगाडाटर साब, वैसे सारे लोग मुझे ढाका डान कहते हैंगें। मेरे पिताजी कहते हैंगे की मैं डान फ़िलिम के ‘अमिता बच्चन’ सा दिखता हुंगा,  बचपन में।


अच्छा ये बताओ की तुम दोनो को करंट कैसे लगा?


डाटर साब वो हम दोनों पतंग उडा रिये थे की पतंग बिजली के पोल में फ़ंस गयी और करंट लग गया हैगा। 


अरे भाईपतंग तो मैने भी बचपने में खूब उडायी हैं और मेरी पतंग भी कई बार बिजली के खंभों में फ़ंसी थीपर मुझे तो कभी करंट नहीं लगा। 


अरे डाटर साबआप पतंग सद्दी से उडाते होगे पर हमारे यहां पतंग तांबे के तार से उडाते हैंगे ना। 


तार से पतंग !!! उडा रहे थे? और ये तुम्हारी हाथ की अंगुलियां कैसे जख्मी हुयी?


अरे डाटर साब! वो कल पतंग ब्लेड लगा के उडायी थी ना, जे ही में हाथ कट गया हैगा।


मुझे पूरा विश्वास है कि यह सुन कर डाक्टर साहब को एक बडा झटका जरूर लगा होगा। वो भी समझ गये होंगे कि ये बच्चे तो साक्षात शैतान का रूप हैं। लेकिन मुझे तो अपने  चेहरे और सिर के बालों की चिन्ता हो रही थी कि तभी ढाका कि आवाज फ़िर से सुनायी पडी,


डाक्टर साब ये नर्स मैडम जी कै री हैंगी कि करंट से बाल खडे हो गये हैंगे और रंग भी काला पडा गया हैगा।  पर डाक्टर साब मेरे बाल तो बचपन से ही खडे हैंगेये तेल लगा कर भी नहीं बैठते हैंगे। 


जैसे ही मैंने ये सुना तो जान में जान आयी कि ज्यादा करंट लगने वाला बच्चा मैं नहीं हूँ.  मैं तो बिना बात के ही रोये जा रहा था। वह नर्स तो ढाका के बारे में बता रही थी और मुझे लगा कि शायद करंट लगने की वजह से मेरा चेहरा काला पड गया हो और बाल भी खडे हो गये होंजैसा कार्टून फ़िल्मों में  दिखाते हैं। शायद नर्स ढाका के हमेशा खडे रहने वाले बालों और श्याम रंग को देखकर धोखा खा गयी थी। आधे से ज्यादा स्वस्थ तो मैं यह बात सुनकर ही हो गया था।    



थोडी देर में ही हमें अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी थी। मेरे पिता जी ही हम दोनो को अस्पताल लेकर आये थे। डाक्टर ने निकलते समय हमें सावधान किया था कि आगे से पतंग तार से ना उडायें। मौका लगते ही ढाका ने भी डाक्टर साहब से अपने सिर के खडे बालों को बैठाने का उपाय भी पूछ लिया। डाक्टर साहब ने कहा किखडे बालों को बैठाने के लिये तो बालों का आपरेशन करना पडता हैलेकिन वो पच्चीस वर्ष की आयु के बाद होता है। जब पच्चीस साल के हो जाओ तो  जाना। 


पिताजी ने घर आते समय हम दोनों की आईस क्रीम भी खिलाई, और समझाते हुए कहा था कि आइंदा ऐसे खतरनाक काम ना करेंपतंग उडानी है तो सावधानी से उडायें। ढाका मेरे पिताजी से बोला
           

अंकलआप परेशान मत हो ये तो होनी थी, जब-जब जो-जो होना हैतब-तब सो-सो होता है। 


पिता जी एक बच्चे के मुंह से ऐसी बात सुनकर हैरान हो गये,

वाहबहुत बडिया बेटाक्या तुमने तुलसी की रामायण ढी है


नहीं अंकल कभी मौका नहीं मिला हैगापर पापा से सुना था कि अब कहां तुलसी के चाहने वाले लोग रहे।  


नहीं बेटाऐसी बात नहीं हैतुलसीदास तो रामचरित मानस लिख के अमर हो गये हैं उनके चाहने वाले तो आज भी अनगिनत हैं। 


पिता जी को लगा कि ढाका ने तुलसीदास रचित रामचरित मानस के दोहे, ''होई है सोई सो जो राम रचि राखाको करी तरक बडावहिं शाखा'' की बात की थी। ऐसी दार्शनिकों वाली बात एक बच्चे के मुंह से सुनकर तो मेरे पिताजी ढाका से प्रभावित होए बिना नही रह सकेऔर थोडी से नसीहत मुझे भी मिल गयी कि देख कितना समझदार बच्चा हैकुछ सीख ससे। 


मैं मन ही मन सोच रहा था कि तार से पतंग उडाने का आईडिया भी तो इसी समझदार बच्चे ने ही दिया था। लेकिन ये बात मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही थी कि ढाका इतनी बडी-बडी बातें कैसे जानता है। अगले दिन जब ढाका आया तो मैने पूछा,


क्यों बेतू तुलसीदास की रामायण के बारे में क्या जानता है?


अबेतुलसीदास नहीं तुलसी हैगा उसका नाम और मैं क्या हमारे कालोनी का बच्चा-बच्चा जानता हैगा तुलसी के बारे मे। और उसके घर में कोई रामायण नहीं पढता हैगा। उसके घर में तो महाभारत होती हैगी आये दिन।


तु किस तुलसी की बात कर रहा है बे?


हमारे कालोनी में ही तो रहती हैगी। सबसे फ़ेमस आईटम  हैगी अपनी कालोनी कीसारे लडके उसके पीछे ही पडे रहते हैंगे। पर पिछले साल एक ट्रक ड्राईबर के साथ भाग गयी हैगी और अभी कुछ महीने पहले ही लौट  के वापस आयी हैगी। पर अब तुलसी के चाहने 
वाले नहीं रहे हैंगेऐसा मेरे पापा कै रे हैंगे किसी से जभी मैने सुना। 


अच्छा, तो तुने वो कहां से सीखा कि जब-जब जो-जो होना हैतब-तब सो-सो होता है। 


अरे यार वो बिन्दु का डैडी बिन्दु की मम्मी से कै रिया हैगा। 


हे भगवानअब ये बिन्दु कौन है?


अरे यार बिन्दु तो शायरा बानो हैगीदिलीप कुमार की बीबी।


तु शायरा बानो के घर कब गया?


अरे मेरे भाईतु सवाल बहुत पूछ्ता हैगा। 'पडोसन' फ़िलिम देखी है 


नहीं देखी।  


तो सुन पडोसन फ़िलिम में बिंदू (शायरा बानोजब भोला (सुनील दत्तसे शादी करने को मना कर देती हैंगी जभी तभी टकलू मास्टर जी (महमूदआते हैंगे। तो बिन्दु अपने डैडी से कहती हैगी कि मैं तो मास्टर जी से ही शादी करुंगी। तब बिन्दु के डैडी बिन्दु की मम्मी से कैते हैंगे कि जब-जब जो-जो होना हैतब-तब सो-सो होता है। समझे इंस्पेक्टर साब। 


तभी टेंटु दौडता हुआ आया और ढाका से बोला

ओए धाका, तल मेली सम उताल, सब को पता तल दया है कि तुम दोनों ने ताल से पतंग उलायी थी, आज के अतबार में तपा है ति दो बच्चों तो तरंट लगा है।



हरी सुपारी वन में डाली, सीता जी ने कसम उतारी हैगी 


उस साल टेंटु फ़ेल भी नहीं हुआ। लेकिन हम लोगों ने फ़िर कभी पतंग ना उडाने की कसम खायी वह भी विद्या-रानी की।    



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Unknown said...

yaar sudhir bhai

Dr. sahab aur DHAKA ka samvad(talking) mujhe bahut pasand ayi, maja aa gaya

Anonymous said...

sudheer ji (inspector sahab) lagta hai ki aapko ab sankaln chhapwa hi dena chahye........ too good a story man.... ab hamain dhaka aur truck wale ke saanth bhagne walee....dono patron ki talassh hai,,,, vidya raani ki kasam......