Sunday 22 August 2010

ढाका भाग 2




अभी तक आपने भाग १ में पडा कि ढाका कौन है और उसका नाम ढाका कैसे पडा.   


अब पढिये आगे की कहानी,

 (चित्र: httplazybug.wordpress.कॉम से)

ढाका ने पहले लंगड मार-मार के दुसरे पतंगबाजों का जीना हराम कर रखा था, लेकिन जब से उसको पतंग उडानी यी तब से ढाका पीडितों का क्षेत्र भी बड गया था। अब उसकी चपेट में आस पडोस के लोग भी आने लगे थे और शुरुआत हुई उसके पिताजी से।  ढाका लगभग हर शाम को मेरे घर की जाता और उसके बाद उसकी पतंगो का दौर चलता। एक शाम मुझे ढाका के चेहेरे पर कुछ असमान्य से उभार, लाल रंग की अधिकता, और सिर के बाल भी ज्यादा खडे नजर रहे थे। बात साफ़ थी कि वह कहीं से पिट के रहा था। मैने पूछा,

ये तेरे चेहेरे पर क्या हुआ? गिर गया था क्या?

हैंय! क्या बोलता है, ढाका डान को कोई नहीं पीट सकता हैगा। वो तो बस थोडा सा कान कट गया हैगा।  

कैसे कटा ? दिखा जरा 

अबे मेरा नहीं, मेरे बापू का। वो अपन  पतंग उडाने की प्रैक्टिस कर रहा हैगा और बापू उधर से निकल रे हैंगे, पतंग और मांझे के बीच में उनका कान गया हैंगा। ये तो मैने समय पर देख लिया हैगा कि पतंग पानी पर जा गिरने वाली हैगी और पतंग को बचाने के लिये खींच मार दी (पतंगबाजी में डोर को बहुत तेजी से अपनी ओर खींचने को 'खींच मारना' कहा जाता है) 

तो फ़िर क्या हुआ?

अबे होना क्या था, कान काट कट गया हैगा बाप का और क्या।

पर तेरे पिता जी तो बडे शांत किस्म के हैंक्या उन्होंने तुझे पीटा ?

नहीं बेबापू तो अपने गांधी जी जैसे हैंगे, ये तो उनका  कान दूसरी बार कटा था लेकिन फ़िर भी वे कुछ नहीं बोले हैंगे, बस थोडा सा डांटा हैगा पीटा तो मुझे मां ने हैगा,

क्यों

अरे यार मां आंगन में झाडू लगा रही हैंगी, उनके पांव की अंगुलियां मांझे में फ़ंस गयी और कट गयी हैंगी। लेकिन मुझे मारा तो तब भी नहीं हैगा। 

तो ?

अरे वो तो मैने ही शोर मचा दिया हैगा कि मेरा मांझा तोड डाला हैगादेख के क्यों नहीं चलतीइसके 
बाद मां ने झाडू से ही जवाब दिया हैगा। और  भी कह दिया हैगा कि आज के बाद पतंग उडाना बंद। 

तो क्या आज से पतंग उडाना बंद  देगा?

बेटेढाका डान  हैगाडान जिसे आज तक पुलिस नहीं पकड पायी हैगी तो मां क्या पकडेगी।  तु डरता क्यों हैगा। आज से मेरी पतंग और चर्खी तेरे पास रहेगी और मैं पतंग तेरे यहां आ कर उडाउंगा। इंस्पैक्टर साब! तुम डरते बहुत हैंगे। एक बा ढाका डान की याद रखना कि डान जीता भी अपनी मर्जी से है और पतंग भी अपनी मर्जी से उडता हैगा, ढिच्कियाउं!!! 

जब हम लोग छुप्पन छुपाई खेलते तो ढाका हमेशा डान बनता और मुझे इंस्पैक्टर बनना पडता था। इसलिये ढाका मुझे इंस्पैक्टर साब कहता था, हां कभी कभी बात में 'बेटा' जोडना 
उसकी पुरानी आदत थी। लेकिन मैने ढाका में एक बहुत अच्छी बात देखी थी कि चाहे कैसी भी परेशानी आ जाये पर मजाल है कभी भी उसके चेहरे पर एक भी शिकन पडी हो, उसमें आत्म विश्वास गजब का था।

पहले उसे लगा था कि पतंगबाजी तो बडी सरल चीज है, उसने सोचा था कि लालू समते अन्य पतंगबाजों का बिस्तर तो एक पतंग की खेंच में गोल कर देगा। हांलाकि उसे पतंग उडाना सीखे बहुत दिन नहीं हुये थे लेकिन पेंच लडाते हुए आज  चार दिन हो चुके थे हमारी पतंगें कटते हुये भी। लालू की पतंग काटना तो दूर की बात थी छोटे छोटे बच्चों की पतंगें भी ढाका नहीं काटा पाया था।

यदि आपने कभी पतंग उडायी हो तो ये अवश्य पता होगा कि पतंगों के पेंच लडाना और विपक्षी पतंगबाज की पतंग काटना एक कठिन कला है जो निरंतर अभ्यास से आती है, पर 
ये बात जब ढाका समझता तब ना। वो तो हार मानने को तैयार ही नहीं था। हर दिन स्कूल से लौटते समय नया रंग व प्रकार का मांझा हम लोग इस आस से खरीदते थे कि ये सबसे तेज मांझा है इससे तो आज हम पतंग काट ही देंगे। हम सोचते थे कि जितना अच्छा या मंहगा मांझा होगा वो दूसरों के मांझे को काट ही देगा। पर पतंगबाजी की वास्तविकता ये है कि यदि आपके पास सबसे अच्छा मांझा भी हो, परन्तु यदि आपको पतंग काटने के दांव पेंच नहीं आते हों तो आपकी पतंग कटते देर नहीं लगती। यही जीवन में भी होता है। हम चाहे कितने भी कुशल क्यों ना हो, पर कभी-कभी एक ऐसे व्यक्ति से हार जाते हैं जिसको और कुछ आये या ना आये पर समाज के दांव-पेंच बखूबी आते हैं।

खैर छोडिये, तो ढाका और इंस्पैक्टर साहब दोनों ने हर तरह का मांझा प्रयोग कर के देख लिया परन्तु एक भी पतंग ना काट सके। एक थकी हार शाम को ढाका मुझ से बोला, 

इंस्पैक्टर एक बात तो पक्की हैगी की अब हमें कोई और तरकीब लगानी पडेगी अपनी इज्जत बचाने की वरना ये सब लोग सोचेगें की ढाका डान तो एक भी पतंग ना काट सका हैगा। जो इज्जत अपन ने लंगड मार-मार के कमाई हैगी वो सब लुट जायेगी।

कौन सी इज्जत भाई?

बेटे!, तु जानता नी हैगा ढाका को। जब ढाका लंगड लेके निकलता हैगा तो बडे-बडे पतंगबाज भी अपनी पतंग उतार लेते हैंगे। पर मैने कभी सोचा नी हैगा कि ये दिन भी देखना पडेगा। कोई बात नहीं, आज अपनी पतंग कटने का अंतिम दिन हैगा, कल से औरों की कटेगी। 

यह कहते हुये ढाका के चेहरे पर एक चिर परिचित हंसी दिखाई दी, मैं समझ गया था कि कल जरूर कुछ ना कुछ होने वाला है। क्योंकि जबभी वो पहले आंख मारता और फ़िर 
हंसता तो समझ जाईये कि उसका दिमाग कुछ ज्यादा तेज चल रहा है, और कुछ ना कुछ तो होने वाला है। अगले दिन का मुझे भी बेसब्री से इंतजार था कि हम दूसरों की पतंग काटेगें और उन पर हंस सकेगें। अगले दिन ढाका आया लेकिन मुझे उसके पास नया मांझा नहीं दिखाई दिया, तो मैने पूछा कि क्या तैयारी है आज? तो वह बोला,

बेटे, तैयारी तो सालिड हैगी, लाइफ़बाय़ जैसी। ये देख ये क्या है?

ढाका ने अपनी जेब से डाढी बनाने वाली टोपाज ब्लेड का पैकेट निकाला और मुझे दिखाया। उसने बताया कि हम इन ब्लेडों को थोडी-थोडी दूरी के अंतराल के बाद मांझे के बीच में बांध देंगे, और फ़िर जब पतंगों के पेंच होंगे तो विपक्षियों की पतंगें इन ब्लेडों से कट-कट कर ऐसे गिरेंगी कि देखने वाले देखते रह जायेगें। हम दोनो तो इतने आत्मविश्वास से भरे हुये थे कि आज तो कितना भी बडा पतंगबाज सामने आ जाये, एक-एक को ढेर कर देंगे। 




आसमान में कई पतंगे आ चुकी थी, पर हमें तो सबसे बडी मुर्गी की प्रतीक्षा थी, लालू की। जैसे ही लालू के घर की ओर से पतंग आसमान में दिखाई दी, हम दोनों एक दूसरे की और देखकर मुस्कुराये कि जैसे अब तो ये गया। हम दोनो ने पतंग के नजदीक वाले सिरे में दस ब्लेडें बांध के तैयार कर ली थी। ढाका ने पतंग उडानी शुरु की और मेरा काम था उसे छुट्टैया देना। छुट्टैया या छुटकी देना वो क्रिया या जिसमें एक व्यक्ति पतंग को इस तरह पकड के उपर की तरफ़ छोडता है की दुसरी तरफ़ डोर पकडा व्यक्ति पतंग को आसानी से आसमान में उडा सके।

हमारी पतंग भी ढाका की पतंग के नजदीक पहुंच गयी थी, सारे पतंगबाजों और पतंग लूटने वालों का ध्यान इन दोनो पतंगों के पेंच पर टिक गया था। हमें तो बस तैयार थे कि जल्दी ही लालू की पतंग पर कटे पक्षी की भांति नीचे आने वाली है और साथ ही लालू की बादशाह-त भी। आसपास के वातावरण में हलचल बड चुकी थी, आपस में शर्तें लग रही थी कि किस की पतंग कटेगी और कैसे कटेगी। बडे-बडे अनुभवी पतंगबाज अपने अपने 'एक्स्पर्ट कमेंट' दे रहे थे। मैं ठीक ढाका के निकट चर्खी पकडे खडा था। स्थिति बडी रोमांचक हो रही थी कि अचानक हमारी पतंग हवा में झूलती हई सी दिखी दी। मेरी नजर ढाका के हाथ की ओर गयी तो देखा की डोर भी मुरझायी बेल की भांति नीचे आ गिरी थी। मेरा ह्रदय धम्म से रुक सा गयादूर सामने पतंग लू्टेरों के दल में हो रहा हो-हल्ला और दौड-भाग भी इसी बात की पुष्टि कर रही थी एक पतंग कट चुकी है, और वो भी हमारी। ढाका कभी अपने हाथ की डोर 
को देखता, तो कभी हिचकोले खाकर धरती की तरफ़ आती हमारी पतंग, और कभी उपर आसमान में लालू की पतंग को। उधर से लालू ने सींटी बजा के अपनी विजय का शंखनाद 
किया, मानो व ह रहा हो कि मेरी पतंग से टकराने से पहले ही तुम्हारी पतंग कि तो टांय-टांय फ़िस्स हो गयी। 
  
संभवत: इतना आश्चर्य सु्मुद्री जहाज 'टाईटेनिक' के डूबने पर इसके डिजायनर इंजीनियर थामस एंड्रुज भी नहीं हुआ होगा, कि जितना अत्याधुनिक मारक क्षमता से लैस हमारी पतंग के कटने पर हम दोनो को हो रहा था। आखिर बिना पेंच हुये ही हमारी पतंग कैसे कट गयी?

पर इस बात का खुलासा तो तब हुआ जब दो तीन पतंग लुटेरे भी पतंग की डोर में बंधी ब्लेडों की चपेट में आकर जख्मी हो गये। पतंग उडाने के दौरान ढाका के हाथ की उंगलियां भी जख्मी हो गयी थी और खून बह रहा था। हम दोनो समझ गये थे कि हमने ही अपने 
पांवों पर कुल्हाडी मारी थी। जो ब्लेड हमने दुसरोंकी पतंग काटने के लिये बांधी थी, उससे हमारी पतंगे की डोर ही कमजोर हुई और कट गयी। 

बात तो छोटी सी थी परन्तु बडा गहरा अर्थ रखती है कि दूसरों के लिये गड्डा खोदने वाले 
स्वयं ही अकसर उस गड्डे में जा गिरते हैं। जो कांटे हम दुसरों के लिये बोते हैं, उन पर जाने अनजाने कभी ना कभी अपना पैर भी जरूर पडता है। 
  
आज हम पुन: हार चुके थे, और वो भी सब के सामने। फ़िर उस शाम हम दोनो के बीच कुछ ज्यादा बातें नहीं हुई। सभी ढाका के इस आईडिये की धज्जियां उडा रहे थे, जिसने खुद की पतंग तो कटवायी ही, पतंग लूटने वालों को भी घायल करवा दिया था। 

उस शाम को ढाका मुझे कहकर गया था कि मैं कोई नया आईडिया सोच के आऊंगा और इस बार ऐसा तरीका होगा की सब देखते रह जायेंगे। ढाका अगले ही दिन आया और एक ऐसा तरीका लेक आया कि जिसने हमारी कालोनी में ही नहीं पूरे शहर में हलचल मचा दी थी। स्थानीय समाचार पत्रों में भी हमारा कारनामा छपा। हमने लालू की पतंग भी काटी, और इस घटना के बाद  ढाका की रक्त –रंजित पतंगबाजी को भी लगाम लगी।

क्या थी उसकी नयी जुगत, पढिये अगले सोमवार से पहले।
क्रमश: 

6 comments:

Unknown said...

wah Sudhir Bhai maja aa gaya, mujhe DHAKA ka role bahut pasand aya, aur INSPECTOR ka bhi mast hai bhai

Hitesh The Depandable said...

kya baat hai inspector maja aa gaya haiga

Parul said...

story is catchy.... rly its interesting till end.....

कथाकार said...

विचारों से अवगत कराने के लिये आपका धन्यवाद।

Anonymous said...

bhai dhaka ki prasidhdhi dekhkar geeta vishwaas, gangadhar aur shaktimaan wala taste yaad aa gaya.....,,,,,,"DHAKA THE DON".
and with the growing time scale you are going acme dude. i enjoyaed... but like hindi daharawahik tune agle episod ka clause daal diya any way/// i read that too

Anonymous said...

अप्रतिम !