Saturday, 15 September 2012

घरेकि बात छु


आर्य जी को कुमाउंनी बोली के प्रति कुछ ज्यादा ही लगाव था और उनका एक ही प्रिय वाक्य (डायलाग) था, `घरेकि बात छु `। इसका वाक्य का भावार्थ हिन्दी में कुछ इस तरह किया जा सकता है कि जल्दी बाजी की कोई जरुरत नहीं है, कछुए की तरह धीरे धीरे लगे रहो और कक्षा में अपने घर जैसा ही अनुभव करो । अपनी पुस्तिका (कापी) जचंवानी (चेक करानी) हो तो जचंवा लो, नहीं तो जब मन करे करवा लेना, घरेकि बात छु। किताब लाये या ना लाये, कोई बात नहीं, घरेकि बात छु। आर्य जी का मन करे तो स्कूल आना भी घरेकि बात छु। हां, यदि किसी बात पर आर्य जी को क्रोध आ गया तो वह परशुराम या दुर्वासा का अवतार हो जाते थे, और फ़िर एक बच्चा पिटेगा और पूरी क्लासएवटर’ (हालीबुड फ़िल्म) का आनन्द लेती थी।

आर्य जी, वैसे तो मजाकिया किस्म के अध्यापक थे पर क्रोधित होने में भी देर नहीं लगाते थे। नीली ऊन की नेपाली टोपी वाले आर्य जी की आंखों की द्रष्टि भी थोडी टेडी मेडी थी, जनसाधारण की भाषा में आर्य जी ढेडें (भैंगे) थे। अत: कुछ (गन्दे)बच्चे उन्हे आर्या ढेंडा भी कहते थे। कक्षा में यदि उन्होने नाम लेकर किसी बच्चे को उठाया तो ठीक नहीं तो कन्फ़्युजन हो जाता था, आखिर कह किससे रहे हैं? आर्य जी देखेंगे कहीं ओर और कह देंगे, ‘उठ रे चल आगे पढ’। अब विद्यार्थी को कैसे पता कि, कहां पर तीर कहां पर निशाना। यदि वह लडका एक-दो बार कहने पर नहीं उठा तो (अब यह तो किसी को भी नहीं पता कि आखिर कौन सा लडका), ले दना दन,
सूउर की औलाद,
बनिये की दुकान समझ रखी है..............   

मेरा छोटा भाई, कक्षा सात में पढता था, और उसके कक्षाध्यापक श्री रमेश चन्द्र आर्य जी थे। कक्षा सात का मासिक शुल्क (फ़ीस) चालीस रुपये के आस पास था, परन्तु आर्य जी बच्चों को पांच या दस रुपया बढा के बताते थे। पूरी कक्षा में सत्तर-अस्सी विद्यार्थी थे और इस प्रकार प्रत्येक माह गुरुजी अपने चाय पानी का अच्छा इंतजाम कर लेते थे। इसके अतिरिक्त साल में कक्षा में एक बार सफ़ेदी करवाने के लिये प्रत्येक विद्यार्थी से ए-दो रुपये अतिरिक्त जमा करवाते, परन्तु चूना कक्षा में लगाने के बजाय विद्यार्थीयों को लगाते। चूने वाले बात तो लगभग सभी बच्चों को पता थी परन्तु अतिरिक्त  फ़ीस  में बारे में शायद ही किसी बच्चे को पता था। मेरे भाई को इस बारे में कहीं से भनक लगी तो उसने स्कूल के कार्यालय में जा कर इस बात की पुष्टि की आर्य जी अनार्यों वाले क्रत्य कर रहे हैं, और मुझे बताया। बात यह थी कि यदि कोई विद्यार्थी इस बारे में आर्य जी से कुछ पूछता तो समझों वह साल भर के लिये आर्य जी का ‘पंचिंग बैग' बन जाता और आर्य जी ‘घरेकि बात छु’ समझ कर कभी भी उस पर हाथ साफ़ करते रहते।

मैने सोचा कि यह बात प्रिंसिपल साहब के सामने अवश्य आनी चाहिये, अन्यथा आर्य जी ‘घरेकि बात छु’ समझ कर ऐसा करते रहेंगे। अत: मैने एक अनाम पत्र प्रिंसिपल साहब के नाम लिखा, जो कि बहुत ईमानदार और बडे तेज तर्रार व्यक्ति थे। प्रत्येक माह की पन्द्रह तारीख को फ़ीस जमा की जाती थी, जो की कक्षाध्यापक महोदय पहले वादन (पीरियड) में करते थे। मैने पन्द्रह तारीख को प्रार्थना सभा से ठीक पहले यह पत्र प्रिंसिपल साहब के दफ़तर में किसी तरह पहुंचा दिया था। फ़िर आगे का हाल मेरे भाई ने शाम को घर में आकर बताया।

पहले वादन में आर्य जी ने रजिस्टर खोल कर फ़ीस जमा करनी प्रारंभ की और फ़िर थोडी देर बाद प्रिंसिपल सर का कर्मचारी एक प्रष्ठ (पेज) लेकर आर्य जी के पास आया। मेरा भाई उस पेज और कर्मचारी को देख कर ही समझ गया कि अब क्या होने वाला है । यह वही पत्र था जिसे मैंने प्रिंसिपल साहब को भेजा था। उन्होनें उस पर नोट लिखकर आर्य जी को भेजा कि यह सब क्या चल रहा है? पत्र पढने के बाद आर्य जी का चेहरा देखने लायक था, यह बात बस मेरा भाई अनुभव कर सकता था क्योंकि उसे पूरी कहानी पता थी। आर्य जी ने उस पत्र पर हस्ताक्षर कर के प्रिंसिपल साहब के पास लौटा दिया और फ़िर से फ़ीस जमा करने लगे और सबको बताया कि फ़ीस थोडा कम हो गयी है। लेकिन वह यह बात तो समझ गये थे कि घर का भेदी लंका ढावे, हो न हो पत्र लिखने वाला इसी कक्षा में बैठा है। संभवत: उन्होने मन ही मन पत्र की हैंड राइटिंग पहचानने का प्रयास किया होगा। अंतत: उनका संदेह कक्षा के एक ऐसे विद्यार्थी पर गया जो थोडा नेता किस्म था। थोडी देर के बाद कोई मौका ढूंढ कर उन्होने उस विद्यार्थी की जम के कुटाई की और शायद थोडी मानसिक शांति पायी हो। परन्तु उसके बाद से आर्य जी ने कक्षा में सफ़ेदी के लिये कभी अतिरिक्त पैसा नहीं लिया।



                  

3 comments:

Pawan said...


"घरेकि बात छु"

Nirmal Tripathi said...

waa muje sab kuch yaad hai ...aaj tak koi nahi janta tha ki wo chthhi kisne likki ....??????..ssab log sochte thee ki Chitthi neta ji ne hi likki hogi:)

कथाकार said...

आर्य जी, बुरा ना माने, घरेकि बात छु :)