नेता सबका धन हरें,
बढाये जन की पीर
भ्रष्टाचार के कारने, नेताजी धरयो शरीर।
भ्रष्टाचार के कारने, नेताजी धरयो शरीर।
ये मेरी आत्मकथा है।
मैने इसे मेरी इसलिये कहा क्योंकि हम नेताओं की हर चीज अपनी ही होती है, हम किसी को
भी पराया नहीं मानते हैं। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना, जिसका अर्थ होता है कि सम्पूर्ण संसार अपना कुटुंब/घर है, को हम
नेता और परोपकारी (साधु-संन्यासी) दोनो तरह के लोग मानते है। बस केवल अंतर इतना ही है परोपकारी लोग पूरे संसार को अपना मान कर अपना
सब कुछ दीन-दुखियों को दान
कर देते हैं, परन्तु नेता पूरे संसार को अपना कुटुंब मानकर नि: संकोच सबसे कुछ ना कुछ ले ही लेते हैं, आखिर इसमें शरमाने की क्या
बात, वसुधैव कुटुम्बकम। ऐसी बात नहीं है कि नेता बस
लेना ही जानते हैं। ऐसी वस्तु तो
कोई भी दे सकता है जो उसके पास
है, परन्तु आश्चर्य की बात तो तब
है जब कोई मनुष्य ऐसी चीज किसी भी व्यक्ति दे के दिखा दे जो उसके पास नहीं। ऐसी वस्तु को कहते हैं आश्वासन, जिसे देना हर किसी के बस की
बात नहीं है। ऐसी ही कई छुपे हुए गुण नेताओं में होते हैं जो उन्हें मानवों की श्रेणी
से अलग करते हैं। आज मैं नेताओं के उन गुणों का वर्णन करुंगा, जो
एक नेता को एक साधारण व्यक्ति से अलग
ला खडा करते हैं। हर मानव नेता
नहीं हो सकता है और हर नेता मानव नहीं होता है।
नेताओं की उत्पत्ति: नेताओं की वास्तविक उत्पत्ति प्रजातन्त्र के आरंभ
से मानी जाती है। हालांकि नेता
उससे पहले भी होते थे, जिन्हे राजा के दरबार में चाटुकारों (मंत्रियों) के नाम से जाना
जाता था। राजाओं के समय में नेता (चाटुकारों) के हाथ में कुछ भी शक्तियां नहीं होती
थी, उनका कार्य बस राजा की बातों में हां में हां मिलानी होती थी। लेकिन जिस दिन से
राजतन्त्र समाप्त हुआ और प्रजातन्त्र या
जनतन्त्र आया
तभी से चाटुकारों को एक नया नाम
मिल गया, ‘नेता', और जब ये नेता जा मिले तो इनसे बनी सरकार, कहीं का ईंट कहीं का
रोडा, भानुमती ने कुनबा जोडा।
नेताओं के शत्रु और मित्र: चीन के एक विचारक ने कहा था कि सत्ता बंदूक की नाल से निकलती है। इसका अर्थ है कि
सत्ता और शक्ति का आपस
में बहुत बडा संबन्ध है। यदि आपके
पास शक्ति है (डाकू, लुटेरे या फ़िर दबंग) तो आपके
पास सत्ता आ सकती है और आप सांसद या विधायक
बन सकते हैं, और यदि आपके पास सत्ता है (मतलब है कि आप
सरकार में है) तो आपके पास सीबीआई
और पुलिस की शक्ति होती है।
एक सच्चे नेता का कोई
स्थायी (परमानेन्ट) मित्र
या शत्रु नहीं होता है। नेता अपने
लाभ के लिये मित्र को भी गिरा सकता है और शत्रु से भी मित्रता कर सकता है। हांलाकि
हर एक ईमानदार व्यक्ति नेता का सबसे बडा जानी
दुश्मन होता है, चाहे वह उसका पिता,
माता या भाई ही क्यों ना हो। सीधे
शब्दों में कहें तो नेतागिरी और ईमानदारी में छत्तीस का आंकडा होता है। लेकिन अपवाद
कहां नहीं होते हैं, कभी हजार सालों में कोई ऐसा नेता भी पैदा हो जाता है जो नेता भी
हो और ईमानदार भी हो। हालांकि जनता ऐसे नेताओ से सर्वाधिक प्रेम करती है, परन्तु नेताओं
की नेता-बिरादरी में कुल-कलंक माना जाता है।
हमारे दूसरे शत्रु
प्रसिद्ध फ़िल्म कलाकार और प्रसिद्ध
क्रिकेटर होते हैं। क्योंकि यही
वह व्यक्ति होते हैं जो खांटी से खांटी नेता तक को चुनाव में बुरी तरह हरा सकते हैं। इतिहास
में से जैसे कुछ नाम हैं, अमिताभ
बच्चन,
नवजोत सिद्धु, हेमा मालिनी, गोविंदा,
शत्रुघन सिन्हा, धर्मेन्द्र,
जया प्रदा, जयललिता और पिछ्ले चुनावों में मुरादाबाद लोकसभा सीट से नया-नया सांसद बना मोहम्मद अजहरुद्दीन। एक पुरानी
कहावत है जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे। मैं पूछता हुं आखिर क्या जरूरत है किसी को अपना काम छोडकर दूसरे के काम में टांग अढाने की। नेता तो नहीं जाते कभी क्रिकेट खेलने या फ़िल्मों में हीरो बनने। और याद रखना जिस दिन कोई नेता मुंबई जाकर फ़िल्म में अभिनय करने लगा ना तो
इन सारे अमिताभ, अभिषेक, आमिर और सलमान की छुट्टी कर देगा, क्योंकि नेताओं से ज्यादा अभिनय (एक्टिंग) करना भी क्या किसी को
आता है। ये तो नेता का अपने कार्य के प्रति समर्पण है कि वो बस अपने काम (नेतागिरी) से मतलब रखते हैं। और ये क्रिकेटर तो नेताओं के सामने तो बच्चे हैं,
ये सचिन तेंदुलकर भी और कितने साल क्रिकेट खेल लेगा, एक
साल, दो साल या फ़िर ज्यादा से ज्यादा अगला वर्ड कप, आखिर कभी ना कभी तो सन्यास लेगा
ही ना। पर एक नेता जिस दिन देश-सेवा (नेतागिरी) के लिये कदम रखता है उसके बाद वह नेतागिरी से सन्यास
अपने अंतिम संस्कार के ही दिन ही
लेता है। तो आप ही सोचिये कौन बडा हुआ, ये झूठे फ़िल्म कलाकार, ये चार दिन के क्रिकेटर
या फ़िर एक नेता जो अपनी पूरा जीवन नेतागिरी के लिये दे देता है। वैसे नेताओं के दुश्मनों
की सूची बहुत लंबी होती है, आखिर मैं किस किस का नाम गिनाउं। सबसे सरल तरीका है, चाहे वह कोई भी व्यक्ति हो, यदि
वह ईमानदार है तो वह नेता का घोर वैरी है,
मेरे सहयोगी लाख समझाते हैं कि अब नब्बे पार करने वाले हो, अब खुद तो चल नहीं सकते
हो, देश क्या चलाओगे, अब संन्यास ले लो। पर क्या करुं दिल है कि मानता नहीं। मुझे अपनी चिन्ता नहीं
है लेकिन आने वाली पीढियों (मेरा मतलब मेरे नाती-पोतो से है) के बारे में सोचता हुं,
इसलिये इतनी उम्र होने ने बाद भी संसद जाने की सोचता हुं, और राजनीति से सन्यास नहीं लेता है। अत: मेरी आप सब
से विनती है कि अगले चुनावों में
जब भी वोट देने जायें तो अपना वोट देने से पहले मेरी इन बातों को अवश्य ध्यान रखिये,
और एक नेता को ही वोट दीजिये, किसी खिलाडी या नौटंकी
करने वाले को नहीं।
आपका अपना
नेता जी
1 comment:
Bhai bus kuch bhee likh lo..
but cartoon mat banana.. ;)
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