आज से कई सौ साल पुरानी बात है लगभग तेरहवीं शताब्दी की, अरब देश में एक बडा प्रसिद्ध दार्शनिक और बुद्दिमान व्यक्ति हुआ था, जिसका नाम था मुल्ला नसिरुद्दीन। जिस प्रकार भारतवर्ष में बीरबल और तेनालीराम की बुद्धिमानी के कई किस्से प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार मध्य-पूर्व (मिडिल-ईस्ट) के देशों में मुल्ला नसिरुद्दीन की बुद्दिमानी के कई किस्से सुनाये जाते हैं। नसिरूद्दीन इतना प्रसिद्ध था कि मध्य-पूर्व का प्रत्येक देश यही कहता है कि मुल्ला नसिरुद्दीन उनके वहां पैदा हुआ था। लेकिन जानकारों का अंदाजा है कि मुल्ला, टर्की, ईरान, अफ़गानिस्तान या फ़िर उजबेकिस्तान में से किसी एक देश में रहा होगा।
आज एक किस्सा मुल्ला नसिरुद्दीन का हो जाय। मुल्ला नसिरुद्दीन, नवाब के दरबार में एक प्रमुख मंत्री था। एक दिन दरबार में कुछ चर्चा चल रही थी कि बात होते-होते फ़लों पर और फ़िर आम पर आ गयी। लेकिन उस देश में किसी भी व्यक्ति ने कभी आम देखा ही नहीं था खाने की बात तो दूर रही। हां, सबको इतना अवश्य पता था कि आम नामक फ़ल भारत में होता है और खाने में सबसे स्वादिष्ट होता है, अत: इसे फ़लों का राजा भी कहते हैं। एक-एक कर सारे दरबारी अपने अपने किस्से सुनाने लगे, कोई बोला कि मेरे परदादा कभी भारत गये थे तो उन्होने आम खाया था, तो कोई बोला कि मेरा दादा ने आम का बीज लाकर पेड लगाया पर उसमें फ़ल कभी नहीं आयें, तो कोई बोला की महाराज आम का आनंद तो मैंगो-शेक बनाकर पीने में है, तो कोई बोला की आम की चटनी तो कोई आम का अचार। तो सारे दरबारियों ने एक दूसरे की बातों में हां में हां मिलायी कि, आम के बारे में सुना तो सभी ने है, पर खाया कभी नही। अब नवाब की बारी आयी तो सारे दरबारी बोले की जहांपनाह आपने तो आम जरूर खाया होगा? नवाब कौन सा आम का इम्पोर्टर-एक्स्पोर्टर था जिसने आम खाये हों, बोला, कि दुनिया की हर चीज मैने खायी है, बस आम ही नहीं खा पाया। पू्री सभा में सन्नाटा छा गया कि, देखो नवाब ने भी आम नहीं खाया है। नवाब आगे बोले, हां मुझे आम के बारे में इतना अवश्य पता है कि आम के अंदर एक गु्ठली होती है जिसमें बाल होते हैं, और हां आम तब तक मजा नहीं देता जब तक पिल-पिला नहीं हो जाता है।
नवाब का आम- ज्ञान सुन कर दरबारी वाह-वाह कर उठे, एक दो दरबारियों ने अपने नवाब को थोडा और चढा दिया कि, जिसने आम नहीं खाया तो उसने जीवन में क्या खाया। नवाब को सनक आ गयी, बोले मु्ल्ला नसिरुद्दीन तुम आज ही अपने लाव लश्कर के साथ हिन्दोस्तां की तरफ़ रवाना हो जाओ और हमारे लिये और हमारी रियाआ के लिये आम लेकर आओ। जितना भी दिनार (रुपया) खर्च होगा, हम देंगे। हां एक बात और कि हिन्दोस्तां के नवाब के लिये हमारी तरफ़ से भेंट भी ले के जाना।
यह बात पूरे शहर में आग की तरह फ़ैल गयी कि नवाब ने हिन्दुस्तान से आम मंगवायें हैं और पूरी प्रजा को भी खाने को मिलेंगे, हर तरफ़ खुशी और उत्साह की तरंग दौड पडी। इस कांरवे में जाने के लिये जिस-जिस व्यक्ति का चयन हुआ, वह तो ऐसे खुशी से फ़ूले नहीं समा रहे थे जितना आजकल अमेरीका का एच-वन वीजा लगने के बाद भी लोग खुश नहीं होते होंगे।
शुभ-मुहूर्त देख कर मुल्ला नसिरुद्दीन एक बडा ऊंटों और सिपाह-सालारों का कांरवा लेकर पूर्ब दिशा की ओर चल दिये। लगभग दो महीनों की यात्रा के बाद कांरवा दिल्ली पहुंचा। मुल्ला ने दिल्ली के राजा से मिलकर अपने आने का मंतव्य बताया और अपने नवाब की ओर से गिफ़्ट भी दिये। दिल्ली के राजा ने बताया की आप लोग सही समय पर आये हैं, ठीक एक महीने बाद से ही दशहरी, कलमी और लंगडा आम मार्केट में आ जायेंगे। तब तक आप मुंबईया आम (अल्फ़ांसो) का आनंद लिजिये, यह आम थोडा जल्दी बाजार में आ जाता है, खाने में यह बहुत स्वादिष्ट तो नहीं होता पर जूस और मैंगो शेक इसका सही बनता है। अंधा क्या चाहे दो आंखे, मुल्ला और उसके साथ आये लोगो ने दिन-रात आम ही आम सूते। दो महीने के प्रवास में वो दल लाखों के तो आम ही खा चुका था, लेकिन अतिथि देवो भव: समझ के दिल्ली के राजा ने उन्हे आम खिलाने में कोई कसर नहीं छोडी, और मुझे याद है उस साल आम की फ़सल की बडी अच्छी हुई थी।
वापसी के समय मुल्ला नसिरुद्दीन ने सैकडों किलो आम बंधवायें और वो भी हर प्रकार के, और फ़िर कांरवा वापस अपने मुल्क की ओर रवाना हुआ। आम कुछ कच्चे ही रखे गये थे कि वहां पहुंचने तक पक जायें, पर यह किसे ध्यान रहा कि यह दो महीने का रास्ता पूरा होने तक आम सही सलामत बचेंगे, उपर से गर्मी का समय और रेगिस्तान का तपता रास्ता। दो-तीन हफ़्ते की यात्रा के बाद ही आम पिल-पिले होने लगे। सेवकों ने मुल्ला नसिरूद्दीन को बताया की अभी तो आधा मार्ग भी तय नही हुआ है और आम पक चुके हैं और जल्दी ही खराब होने लगेंगे। मुल्ला बोला, आम खराब हो इससे पहले उन्हे खा लो, मेरे लिये दशहरी आम रख देना, मैं रात को खाउंगा। सेवक बोला, मुल्ला जी आपका कहना तो सही है, खाने का मन तो हम सब का कर रहा है लेकिन वापस पहुंच कर हम नवाब और रियाया को क्या जवाब देंगे। वो लोग या तो आम खायेंगे या फ़िर हमे ही खा खायेंगे। मुल्ला नसिरुद्दीन बोला के तब कि तब देखेंगे, अभी आम खायें।
इस तरह जो आम पकते गये उन्हे वो लोग खाते गये, इस तरह धीरे-धीरे सारे आम पक गये और सारे आम घर पहुंचने से पहले ही खा लिये गये। अब समस्या आयी कि वापस पहुंच कर क्या जवाब देंगे। कुछ ने तो सलाह दी कि भारत वापस लौट कर फ़िर से आम ले आते हैं। तो कुछ बोले कि अब तो हमारे पास सारा धन भी समाप्त होने को है और भारत में आम का मौसम भी समाप्त हो गया होगा। थक-हार कर सबने मुल्ला से प्राण बचाने की पार्थना की। मुल्ला बोला तुम लोग चिन्ता क्यों करते हो, मैं हुं ना।
उधर नवाब के मन में बुरे-बुरे ख्याल आ रहे थे कि क्या बात हो गयी अब तो छह महीने होने को होने हैं, अब तक तो उन्हे आम ले कर लौट आना चाहिये था। पूरी प्रजा भी टकटकी लगाये बैठी थी कि मुल्ला नसिरुद्दीन आयेंगे और आम लायेंगे। चारों ओर बस आम की ही चर्चा थी, विद्यालयों में आम पर निबंध लिखाये जा रहे थे, तो बुजुर्गों की चौपाल में भी बस आम ही आम।
कांरवा शहर के नजदीक ही था और खुशी की लहर पूरे शहर में दौड पडी की आम आ गये हैं, लोग घर से निकल कर मुख्य सडक में पहुंचने लगे की देखें तो सही आम कैसे हैं। जैसे ही कांरवा महल में पहुंचा भारत दौरे में गये सारे व्यक्तों को सुरक्षा में लेकर सीधे नवाब के सामने हाजिर किया गया। महाराज जो सारी स्थिति से अवगत कराया गया कि आम क्यों नहीं लाये जा सके। एक घंटे तक बंद कमरे में चर्चा चलती रही, कोई पत्रकार भी अंदर नहीं जा सका। फ़िर एक घंटे बाद मुल्ला नसिरुद्दीन ने नवाब के साथ बाहर आकर प्रेस वार्ता की और यह खबर जनता को दी कि आम किन कारणों से नहीं आ सके, लेकिन मुल्ला ने यह भी बताया की वह किसी तरह केवल एक आम का दाना बचाकर ला पायें हैं जिसे नवाब को खिलाया जा सकेगा। इसी बात पर तो नवाब ने उन सब को प्राण दंड नहीं दिया था कि कम से कम उनके लिये तो एक आम आया। लेकिन असली बात तो यह थी कि एक आम भी नहीं बचा था, लेकिन मुल्ला को अपनी और अन्य व्यक्तियों की जान भी तो बचानी थी।
तो तय हुआ की शाम के खाने के बाद मुल्ला नसिरुद्दीन, नवाब को आम देंगे। अब मुल्ला नवाब से बोले कि जहांपनाह अच्छा होगा कि उस कमरे में बस हम दोनो ही हों क्योंकि आम तो एक ही है, और सीधी सी बात है कि जब अन्य लोग उसे आपको खाते हुये देखेंगे तो उनके मुंह में भी तो पानी आयेगा, और ये तो अच्छी बात नहीं है कि किसी को ऐसे चिढाते हुई खाया जाय। नवाब ने हामी भर दी। रात के खाने के बाद नवाब आम खाने को तैयार बैठे थे, मुल्ला बोला कि नवाब मैं आपको सरप्राईज देना चाहता हुं कि देखे आप आम के बारे में आपका गैस कितना सही बैठता है। आप बताइये आम कैसा होता है। नवाब बोले, आम एक बहुत मीठा, सरस और बाल वाला फ़ल होता है। मुल्ला बोले ठीक है, महाराज आप आंखें बंद करिये और जैसे ही मैं आपके मुंह में आम दुंगा आप चुसियेगा, क्योंकि आम का मजा तो आंखे बंद कर चूस के खाने में ही आता है, अत: आपसे एक आरजू है कि खाने के दौरान आप आंखे बंद ही रखियेगा। नवाब भी तैयार हो गये।
मुल्ला ने अपने सेवक को ईशारा किया और वह झट से चीनी की गाढी चाशनी से भरा बर्तन ले आया। मुल्ला बोले, महाराज आंखे बंद ही रखियेगा, मैं बस आम खिलाने वाला हुं। मुल्ला ने अपनी दाढी को उस चाशनी में डूबाया और नवाब के मुंह में दे दिया और बोले, महाराज चूसिये ओर बताईये कि कैसा लगा आम। सावन के अंधे को तो हर तरफ़ हरा ही नजर आता है, नवाब को भी आम का स्वाद बडा अच्छा लगा। और इस तरह मुल्ला नसिरुद्दीन ने बिना लाठी तोडे सांप मार दिया।
3 comments:
Bahut mazedar kahani hai...meri niji raay hai ki kahani ka samapan kuch aur mazedaar tarike se ho sakta tha.
Ati uttam
Ati uttam.......kintu aant aur adhik rochak hota to aam sa maza aata.....
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