अकबर पढा लिखा तो नहीं था पर कहा जाता है कि राजा अकबर का मस्तिष्क बडा तेज था, एक बार जो बात वह सुन लेता तो फ़िर कभी ना भूलता। राजा बनने से पहले किशोर अवस्था में अकबर ने एक बकरी का बच्चा पाला हुआ था, जिसे वह अत्यधिक प्रेम करता था। अकबर दिन-रात उसी बकरी के बच्चे के साथ खेलता और रात में भी उसको अपने साथ सुलाता। होनी को अकबर का बचपना रास ना आया, हिमांयु की असमय म्रत्यु हो जाने के कारण मात्र पन्द्रह वर्ष की उम्र के बालक के सर पर दिल्ली की सल्तनत का ताज आ पडा। अकबर कुशल था, योग्य था, अत: राजा से बादशाह भी बना।
राजकाज का भार आ जाने के कारण अब अकबर अपनी प्रिय बकरी के लिये समय नहीं निकाला पाता था। इस बात से अकबर को दुख तो होता परन्तु अब तो उसे अपनी पूरी सल्तनत का खयाल रखना था। अकबर के दिमाग में विचार आया कि क्यों ना बकरी के लिये सरकारी खर्चे पर एक फ़ुल टाईम केयर टेकर रख दिया जाय, वो बकरी का ख्याल रखा करेगा और अकबर दिल्ली का। अंतत: वैकेंसी निकाली गयी, सरकारी बकरी का केयर टेकर बनने के लिये भी हजारों की संख्या में अपलीकेशन्स आयी। फ़िर रिटन इग्जाम होने के बाद इंटरव्यु के लिये उम्मीदवारों को शार्ट लिस्ट किया गया। इंटरव्यु बादशाह ने स्वंय ही लिये और फ़िर एक बकरी का केयर टेकर छांट ही लिया गया। जैसे ही पचास उम्मीदवारों के सामने सफ़ल उम्मीदवार का नाम घोषित किया गया तो सफ़ल व्यक्ति के आंखों में भी खुशी के आंसू आ गये, जैसे आपने कई बार मिस वर्लड या मिस युनिवर्स की आखों में देखे होंगे। अगले दिन सारे अखबारों और टेलीविजन चैनलों में बस वह ही छाया रहा।
धीरे धीरे बात आयी गयी हो गयी, तीन माह बीत चुके थे और फ़िर क्वाटरली रिव्यु की बारी आयी जब भरी सभा में बकरी का केयर टेकर बकरी को ले कर आया। अब बकरी पहले से काफ़ी ह्रष्ट-पुष्ट हो चुकी थी और सुंदर भी लग रही थी। बकरी के सुंदर लगने में मेकअप का भी हाथ था जैसे हालीबुड और बालीबुड सुन्दरियों में भी होता है। राजा और सारी प्रजा वाह-वाह कर उठी। दरबारी केय़र-टेकर की तारीफ़ कर रहे थे (निंदा कर नहीं सकते थे क्योंकि इसे बादशाह अकबर ने चुना था), केयर-टेकर तारीफ़ करने लायक भी था, उसने डेली-शेडयूल ही ऐसा बनया था कि समय से पौष्टिक खाना मिलता और समय से स्नान होता और समय पर प्रतिदिन व्यायाम (जिसे आजकल वर्क-आऊट कहा जाता है) होता था। मेरा तात्पर्य केयर-टेकर के शेडयूल से नहीं, बकरी के शेड्यूल (जानकारी: ब्रिटेन वाले भी अमेरीका की नकल करते हैं, इसीलिये अब ब्रिटेन में भी ‘स्केड्यूल’ काफ़ी सुनायी देने लगा है) से है।
केयर-टेकर बडा प्रसन्न था कि आज तो ईनाम पक्का मिलेगा। तभी अकबर बोले की हरी घास लायी जाय, हम अपनी बकरी को अपने हाथों से घास खिलाना चाहते हैं। बकरी की यह जन्मजात आदत होती है कि चाहे बकरी का पेट कितना ही भरा क्यों ना हो, यदि उसे हरी घास दिख जाये तो कई दिनों के भूखों की तरह उस पर टूट पडती है। वही हुआ जैसे ही अकबर अपने हाथों से बकरी को ताजी हरी घास खिलाने लगे तो बकरी घास पर ऐसे टूट पडी कि मानो कितने जन्मों की भूखी होगी, और खाती ही रही जब तक सारी घास समाप्त नहीं हो गयी। भरी सभा में सन्नाटा छा गया, अकबर क्रोध से भर उठे थे वह बोले,
यही खाना खिलाते हो तुम मेरी बकरी को, देखो कितनी भूखी है वह। ऐसा लगता है कि मेरी प्रिय बकरी को खाना मिलता ही नहीं है, यदि मिलता तो यह ऐसी भूखी होती है। देखो कितनी कमजोर हो गयी है, इसका तो सारा शरीर ही सूज गया है।
बकरी का शरीर कमजोर कहां हुआ था, वह तो खा-खा के मुटिया गयी थी, लेकिन यह बात बादशाह कौन समझाता, कौन अपनी मौत को आमंत्रण देता। बादशाहफ़िर गरजे,
अगले माह फ़िर बकरी को लेकर आओ। हम फ़िर से चेक करेंगे कि तुम बकरी का ख्याल रख रहे हो कि नहीं। जितना धन चाहिये कहो, पर हमारी बकरी का पूरा ध्यान रखो वरना हम तुम्हें चेतावनी देते हैं कि हमेशा बुरा कोई ना होगा।
बादशाह का दिमाग और जबान, एक पत्थर और उस पर पडी लकीर सा तो होता ही है। यह बात सभी को पता थी कि बकरी तो हरी घास देखते ही अपना मुंह बंद नहीं कर सकती है, अब तो इस केयर-टेकर का ही मुंह बंद होगा। ऐसे करते करते एक माह का समय भी निकल गया। इस बीते महीने में केयर-टेकर ने अपनी जी-जान लगा के बकरी को खिला-पिला के और तंदुरुस्त कर दिया था। बकरी की सेहत अब पहले से भी अच्छी हो गयी थी।
निश्चित दिन बकरी को दरबार में लाया गया। बकरी को देखकर बादशाह अकबर सहित सभी दरबारी वाह-वाह कर उठे। लेकिन खोट तो अकबर की परीक्षा विधि में था, वही हुआ ढाक के तीन पात। बकरी हरी-हरी घास देखकर मचल उठी और बादशाह गुस्से में आग बबूला कि मेरी बकरी को खाना क्यों नहीं देते हो?
हूजूरे आला मैं तो इसके खाने का पूरा बन्दोबस्त करता हुं।
तो यह इतनी भुखान (मतलब भूखी) क्यों हो रही है? आज ये हमारी अंतिम चेतावनी है यदि अगले माह ये फ़िर इतनी ही भूखी मिली तो हम तुम्हारी जान के भूखे होंगे, ध्यान रहे, अब जा सकते हो। बाय बकरी।
अब जा कर केयर टेकर को समझ में आया कि क्या खामियाजा भुगतना पड सकता है यदि बकरी ने अपनी औकात फ़िर दिखायी तो, और बकरी ने तो फ़िर वही करना था। अत: अब केयर टेकर की म्रत्यु तो निश्चित थी, यह बात हर किसी के समझ में भी आ गयी थी। तभी किसी शुभचिंतक ने केय़र टेकर को बीरबल के पास जाने की सलाह दी, वो बेचारा किस्मत का मारा दौड-दौडा बीरबल के पास गया। सारी कहानी बीरबल को बतायी गयी, तो बीरबल बोले,
मियां इत्ती से बात पर तुम जान दिये जा रहे हो।
अरे पंडित जी (बीरबल) आप ही कुछ बताइये।
इस बकरी को एक महीने के लिये मेरे पास छोड दो, हम इसे ट्रेन करेंगे, तब तक आप अपनी हेल्थ बनाओ। और हां, इस बात की किसी को खबर ना हो।
केयर टेकर मरता क्या ना करता बकरी को बीरबल के पास छोड के आ गया, परन्तु उसका मन तो अभी भी डरा हुआ था। उसे तो अगले महीने अपनी मौत दिखायी दे रही थी। ऐसे करते-करते एक माह बीत गया और दरबार में पेशी जाने से पहली रात केयर-टेकर बीरबल के घर में बकरी लेने पहुंचा। बीरबल और केय़र टेकर का वार्तालाप ऐसे हुआ।
प्रणाम बीरबल जी, आप कैसे हैं?
नमस्कार आईये, आईये, और कैसे हैं आप, सब कुशल मंगल।
जी हां सब ठीक है।
अरे मैं तो एक महीने की तीर्थ यात्रा में गया था और कल ही लौटा हुं, और आपके बकरी वाले केस का क्या हुआ?
यह सुनते ही केयर-टेकर तो हक्का-बक्का रह गया, उसके तो पांव तले जमीन खिसक गयी। मन तो उसका कर रहा था कि अभी बीरबल का कालर पकड के हिला दुं कि साले तुझे जब तीर्थ यात्रा में जाना था तो मेरी बकरी क्यों रखी? फ़िर भी अपने को संतुलित करता हुं केयर-टेकर बोला,
अरे बीरबल जी आप कैसी बात करते हैं, बकरी वाले केस की सुनवाई तो कल है और वो बकरी भी आपके पास है।
अरे आपकी बकरी मेरे पास है?
हां बीरबल जी, आज से ठीक माह पहले ही तो मैं आपके पास छोड गया था, बल्कि आप ही ने तो कहा था कि इस बकरी को मेरे पास छोड जाओ मैं इसका घास खाना बंद कर दुंगा।
अरे हां याद आया
(यह सुनकर केयर-टेकर के जान में थोडी जान आयी)
बीरबल फ़िर बोले,
हां-हां मुझे याद आ गया, क्षमा चाहता हुं, बात यह हुई कि उसके अगले दिन ही मैं यात्रा पर निकल गया था, और कल शाम ही वापस पहुंचा हुं। एक महीने से बाहर था ना इसीलिये याद नहीं रहा।
(ये साला मरेगा अब मेरे हाथ से, मुझे तो बादशाह ने मारना ही है, उससे पहले मैं इस बीरबल के बच्चे को मार डालूंगा, यह केयर-टेकर मन ही मन सोच रहा था।)
लेकिन हां, आपकी बकरी तो अब तक घास खाना भी छोड चुकी हो गयी होगी, आप चिन्ता मत कीजिये अभी मंगवाता हुं आपकी बकरी को। वैसे यात्रा में जाने से पहले मैं यह कार्य अपने सबसे छोटे बेटे को सौंप के गया था। बडा शैतान है, अब तक तो उसने बकरी को ठीक कर दिया होगा। अरी सुनती हो! जरा मुन्ना को भेजना और कहना की बकरी को ले आये।
अब जाकर केयर-टेकर कि थोडी आस बंधी कि शायद काम पूरा हो गय होगा। तभी एक आठ-दस वर्ष की उम्र का एक बच्चे ने कमरे मेम प्रवेश किया। बच्चा बस एक निकर पहना हुआ था। आते ही बीरबल ने उससे कहा,
अरे मुन्ना उस बकरी को तो लाओ जिसको हमने तुम्हे ट्रेंड करने के लिये दिया था, ये महाशय उसे लेने आये हैं। और सुनो, कमीज पहन लो बेटा, घर में मेहमान आएं हो तो ऐसे नंगे नहीं घूमते हैं।
जी पिता जी।
केयर–टेकर का तो दिमाग काम नहीं कर रहा था, एक पल में तोला और एक पल में माशा, यह उसकी हालत थी। एक क्षण तो उसे सब कुछ सही लगता तो अगले ही क्षण लगता कि किस गधे को बकरी सौंप दी। पहले ये बीरबल पंडित और अब ये छटांग सा छोकरा, ये बकरी को क्या सिखायेगा। तभी मुन्ना एक मरियल और गंदी सी बकरी को ले कर कमरे में आया। केय़र-टेकर के मुंस से अनायस ही निकल पडा,
अरे! ये मेरी बकरी नहीं है, से किसकी बकरी ले आया।
बीरबल ने आश्चर्य से अपने बच्चे की और देखा तो बच्चा बोला,
पिता जी ये वही बकरी है, पिछले एक महीने से तो कोई और बकरी घर में नहीं आयी।
केयर-टेकर ने बकरी के नजदीक जाकर देखा तो अपना सिर पकड लिया, यह तो वही बकरी थी जो वह बीरबल को सौंप कर गया था। यह तो अब चौथाई भी नहीं रह गयी थी। ऐसा लग रहा था कि पिछ्ले एक महीने से बकरी को कुछ खाने को ही नहीं मिला था। यह देखकर केयर-टेकर की आंखों में आंसू आ गये कि वह हट्टी-कट्टी बकरी जिसे बादशाह कमजोर कहते थे, वो बादशाह इस बकरी को देखते ही मुझे वहीं भरे दरबार में कलम कर देंगे, अब तो मरना निश्चित है।
तभी बीरबल बोले,
बेटे मुन्ना! केयर-टेकर साहब शंका में हैं, इन्हें प्रमाण दो कि बकरी अब घास नहीं खायेगी।
प्रत्यक्षं किं प्रमाणं पिता जी, फ़िर भी आप कहते हैं तो अभी देखिये।
क्षण भर में मुन्ना हरी-हरी घास ले आया, और बकरी के सामने रख दी। परन्तु यह क्या बकरी ने घास को देखते ही अपना मुंह दूसरी और कर दिया। केयर को बडा आश्चर्य हुआ कि बकरी ऐसी मरियल हो गयी है फ़िर भी घास नहीं खा रही है। उसने बकरी को घास खिलाने की कितनी कोशिश की परन्तु बकरी तो टस-मस नहीं हुई मानो अनशन में बैठी हुई हो।
देखा पिताजी, अब ये बकरी कभी हरी घास नहीं खायेगी।
वाह बेटा, शाबास, तुमने केयर-टेकर साहब की जान बचा दी। केयर-टेकर साहब इस बकरी को घर ले जाईये और कल दरबार में लाईयेगा।
घर तो मैं इसे ले जाउं पर ये तो बताइये कि अब ये खायेगी क्या?
हरी घास के अलावा सब कुछ आयेगी अंकल, मुन्ना नीचे से बोला। और ये लीजिये ये संटी रखिये, नहीं खाये तो दो लगा दीजियेगा।
संटी उस पतली सी डंडी को कहते हैं जो पेड की हरी और पतली शाखा से बनायी जाती है। यदि ऐसे समझ में नहीं आ रहा हो तो, संटी उस पतली डंडी को कहंगे जिससे मारने की बाद पडने वाला खुजलाता रह जाय। तो केयर-टेकर बकरी और संटी दोनो को लेकर घर आ गये। कभी बकरी को देखते तो कभी अपने आप को दर्पन में देखते, वो तो बस किंकर्त्तव्य विमूढ से हो गये थे। उन्होने घर आकर रात में बकरी को घास खिलाने का फ़िर प्रयास किया परन्तु जो मजाल बकरी घास खा ले। अब तो आज ही की रात है, केयर-टेकर ने सोचा, यह सोचकर उसने पिज्जा आर्डर कर दिया कि कल की तो राम जाने पर आज तो कुछ अच्छा खा लूं। उस रात बकरी और केय़र-टेकर दोनो ने पिज्जा ही खाया। अगले दिन बकरी को अच्छी तरह ने नहला धुला कर केयर-टेकर दरबार में ले गया, वहां सारी प्रजा बकरी को देखकर हक्की-बक्की रह गयी, कि यह वही बकरी है। बादशाह बकरी को देखकर बडा प्रसन्न हुए और बोले,
वाह हमारी बकरी का बच्चा भी हो गया, बिलकुल अपनी मां पर गया है।
माफ़ी चाहता हुं जाहपनाह यह तो आपकी प्रिय बकरी है।
मरदूद क्या बकता है? तेरा दिमाग तो नहीं फ़िर गया, तुझे क्या लगता है कि मेरी आंखों में मोतिया बिंद है। कहां है मेरी बकरी बता।
जहांपनाह जान बख्से तो बताउं।यही है आपकी बकरी।
तूने इसकी क्या हालत कर दी, साले तुझे रहम नहीं आया इस बकरी पर
इस बकरी ने तो मेरा जीना हराम कर दिया है, मन ही मन केयर-टेकर बोला। नहीं महाराज बकरी बिलकुल स्वस्थ है, प्रत्यक्षं किं प्रमाणं महाराज (यह लाइन केयर-टेकर ने कल बीरबल के बच्चे से सीखी थी), आप जांच कर लीजिये। वरना गुलाम का सर और आपकी तलवार।
कहते हैं कि मौत को सामने देखकर तो कायर में भी हिम्मत आ जाती है, केयर-टेकर के साथ भी वही हो रहा था। महाराज का मन तो करा कि साले की अभी गर्दन काट दुं पर भरी सभा के बीच ऐसी मनमानी उचित नहीं थी, सो बोले,
ढेर सारी हरी घास लायी जायी।
घास लायी गयी, परन्तु पूरा दरबार और महाराज भी आश्चर्य चकित रह गये कि बकरी घास खाने को तैयार नहीं है। यह देखकर केयर-टेकर को भी ताव आ गया वह बोला देखा महाराज मैनें कहा था ना कि बकरी बिलकुल भी भूखी नहीं है, वह तो ये डाईटिंग पर है ना, जीरो फ़ीगर चाहती है। अब महाराज के पास भी उत्तर नहीं था, क्या करते बोले ठीक है, तुम बच गये, पर हमें यह जीरो फ़ीगर बिलकुल पसंद नहीं है, इसे नार्मल फ़िगर पर रखो और अगले महीने फ़िर लाओ इसे।
यह सुनते ही केयर-टेकर की खुशी की सीमा नहीं रही, उसने राजा के निकट बैठे बीरबल को दूर से ही प्रणाम किया और लौट आया। शाम को जब बीरबल के घर में केयर-टेकर भी बैठा हुआ था तो बीरबल ने मुन्ना को बुलाया और पुछा,
बेटा मुन्ना केयर-टेकर साब जानना चाहते हैं कि तुमने बकरी का पेट कैसे भर दिया कि उसने घास खाना ही छोड दिया।
पिता जी उसमें कौन सी बडी बात थी, कुत्ते की पूंछ यदि सीधी नही हो तो पूंछ ही काट दो। मैने भी वही किया, इस बकरी के सामने घास रखता था और ये जैसे ही खाने को मुंह मारती थी तो वैसे ही मैं इसके मुंह पर संटी से एक मारता था। जितने बार यह घास खाने को जाती थी उतने ही बार इसके संटी पडती तो धीरे-धीरे इसने घास खाना ही छोड दिया। अब तो वह बकरी सपने में भी घास नहीं खायेगी।
मुन्ना की बात में दम है, कि कुत्ते की पूंछ तो सीधी होने से रही, उसका एक ही उपाय है कि पूंछ ही काट दो, अब यह मुझसे यह मत पूछिये कि मैं किस कुत्ते की बात कर रहा हुं।
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