मैंने मच्छरु से पूछा कि वह
अपने जीवन में क्या बनने का सपना देखता है?
मच्छरु ने अपनी टूटी-फूटी, मिश्रित हिन्दी-अंग्रजी में उत्तर दिया कि, ‘’मुझे कुछ नहीं बनना है’’.
मुझे लगा की शायद मच्छरु मेरा प्रश्न सही से समझ नहीं पाया हो, तो मैंने फिर से पूछा कि जैसे कुछ बच्चे भविष्य में इंजिनियर, तो कुछ डाक्टर, कुछ अध्यापक, या फिर कुछ खिलाड़ी बनना चाहते हैं. ठीक उसी प्रकार तू क्या बनना चाहता है?
मैं कुछ नहीं बनना चाहता हूँ.
परन्तु क्यों?
क्योकिं मुझे पसंद नहीं है.
तो तुझे क्या पसंद है?
मैं एक सेमसंग गैलेक्सी एस थ्री (Samsung Galaxy S3) खरीदना चाहता हूँ, और एक टीवीएस अपाचे (TVS Apache) मोटरसाईकिल खरीदना चाहता हूँ.
अरे मच्छरु, ये तो ठीक है, परन्तु इसके अतिरिक्त जीवन में क्या चाहता है?
कुछ नहीं.क्यों, पढ़ाई पूरी करने के बाद तू अपने पिताजी के साथ दुबई नहीं जाना चाहता है?
जाऊंगा, परन्तु घूमने, काम करने नहीं, बस दो तीन महीने के लिये.
अच्छा, एक बात बता की तेरा नाम मच्छरु क्यों है? मच्छरु का मतलब तो मच्छर (mosquito) होता होगा ना?
मच्छरु ने जो उत्तर दिया वह अक्षरश: (exactly) मुझे आज भी याद है, ‘’मच्छरु मीन्स मैन (man), कोदू मीन्स मच्छर’’.
मच्छरु से मेरी मुलाक़ात केरल के एक छोटे से गांव में हुई. मच्छरु, अपने बड़े भाई और माँ के साथ रहता है. मच्छरु के पिता, दुबई में काम करते हैं और दो साल में एक बार घर आते हैं. मच्छरु की माँ का एक छोटा ब्यूटी पार्लर नजदीक के शहर में है. मच्छरु का बड़ा भाई बारहवीं में पढ़ता है और इंजीनियरिंग की तैयारी भी कर रहा है और पढाई के अलावा बाहरी दुनिया से कोई मतलब नहीं रखता है.मच्छरु अपने बड़े भाई के ठीक विपरीत है, पढाई के सिवाय पूरी दुनिया से मतलब रखता है. मच्छरु की माँ प्रतिदिन प्रात: नौ बजे तक घर का सारा काम निपटा कर अपनी स्कूटी से अपने ब्यूटी पार्लर को चले जाती है, और माँ के जाने के पांच मिनट बाद मच्छरु भी पैदल घर से निकल जाता है. दिन भर मच्छरु पूरे गाँव, और आसपास के गाँव और शहरों की पदयात्रा करता हुआ, नयी-नयी जगह भ्रमण करता हुआ, अपने मित्रों से मुलाकात कर देर शाम तक घर पहुंच ही जाता है. लगभग प्रतिदिन मच्छरु अपनी माँ के ब्यूटी पार्लर भी पहुंच जाता है. अत: माँ को देखते-देखते मच्छरु भी मेकअप, फेशियल, मसाज आदि भी सीख चुका है. मच्छरु का रंग सांवला है जो की मच्छरु को बिलकुल पसंद नहीं है. मच्छरु किसी फ़िल्मी हीरो सा गोरा दिखना चाहता है इसलिए अपनी माँ के ब्यूटी पार्लर जा कर, या फिर घर पर ही मच्छरु प्रतिदिन अपना फेशियल स्वयं करता है. मच्छरु को आशा है कि रोज क्रीम-पाउडर लगा-लगा कर एक दिन वह गोरा हो जाएगा, और मच्छरु की माँ इस आशा में रहती है एक दिन मेरा बेटा समझदार हो कर मेरा मेकअप का सामान बरबाद करना छोड़ देगा.
मच्छरु व्यवहार का बड़ा सुगम है. कोई आस-पड़ोसी या मित्र, मच्छरु से किसी काम के लिए कहे तो मच्छरु कभी मना नहीं करता है यही कारण है की मच्छरु एक लोकप्रिय चरित्र है. मच्छरु का वास्तविक नाम बिबिन है परन्तु घर का नाम मच्छरु है और वह मच्छरु नाम से ही प्रसिद्ध है. मच्छरु का रंग सांवला, कद पांच फुट चार इंच, दुबला पतला शरीर और उम्र पंद्रह-सोलह साल के आस-पास होनी चाहिए यद्यपि वह बारह या तेरह साल का बालक सा प्रतीत होता है. जब मैं, मच्छरु से पहली बार मिला था उसकी, हाईस्कूल की परीक्षाएं नजदीक थी, और इस बात का पता मुझे कैसे चला यह बड़ी मजेदार घटना है.एक सुबह हम लोग कार से समुद्र तट की ओर जा रहे थे और जब मच्छरु को यह पता चला तो वह भी जिद कर के हमारे साथ हो लिया. कुछ दूर आगे जा कर जब हम एक चौराहे के पास कुछ देर के लिए रुके. उस चौराहे के पास ही मच्छरु का विद्यालय था, और मच्छरु को वहाँ पर खड़े अपने कुछ मित्र मिल गए और वह उनसे वार्तालाप करने में व्यस्त हो गया. थोड़ी देर में जब हम लोग चलने को तैयार हुए तो मच्छरु कार में नहीं चढा. मैंने उत्सुकतावश, अपने स्थानीय पथ प्रदर्शक (local guide) से मच्छरु के हमारे साथ नहीं चलने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि आज मच्छरु की हाईस्कूल की बोर्ड प्रैक्टिकल परीक्षा (Board practical examinations) है. तो मैंने जानना चाहा की क्या मच्छरु को पहले से इस बारे में पता नहीं था? तो स्थानीय पथ प्रदर्शक ने बताया की वह भूल गया था, लेकिन अभी उसके मित्रों ने उसे याद दिलाया तो वह परीक्षा देने को जा रहा है. हाईस्कूल परीक्षा किसी भी विद्यार्थी के जीवन का पहला तनाव भरा क्षण होता है. परन्तु यह बात देखने योग्य थी कि मच्छरु के चेहरे पर एक शिकन भी नहीं थी. जैसे थोड़ी देर पहले वह हमारे साथ घूमने चल रहा था उसी तरह अब वह परीक्षा देने जा रहा था. बाद में मच्छरु की बहन ने बताया की यह मच्छरु की कोई नयी बात नहीं है, टेंशन लेना तो मच्छरु ने सीखा ही नहीं है.
एक बार मच्छरु के अध्यापक ने मच्छरु के माता-पिता को विद्यालय में बुलवाया. तब मच्छरु कक्षा आठ में पढ़ता था. मच्छरु के पिता तो घर में थे नहीं अत: मच्छरु की माँ और मौसी दोनों विद्यालय पहुंचे तो अध्यापक ने उनको एक खाली उत्तर पुस्तिका (answer sheet) थमा दी और कहा पढो. उस उत्तर पुस्तिका में नाम तो मच्छरु का लिखा था, पर इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं लिखा था. तो मच्छरु की माँ ने अध्यापक से कहा की ये तो खाली है, इसमें तो कुछ लिखा ही नहीं है. तो अध्यापक महोदय बोले, ध्यान से देखिये आपके सपूत ने ‘क’ लिखा है. दोनों बहनों के यह बात कुछ समझ में नहीं आयी तो अध्यापक ने उंगली से दिखाया कि कंम्प्यूटर साइंस की परीक्षा में आपके नालायक पुत्र ने पूरी उत्तर पुस्तिका में बस पहली पंक्ति (row) में केवल ‘क’ लिखा है. अब बताओ कि इस नालायक का मैं क्या करूँ?
मच्छरु को बुलाया गया और पूछा गया कि ये क्या लिखा है, प्रश्नों के उत्तर कहाँ हैं?
तो मच्छरु बोला कि प्रश्न पत्र (exam paper) देखकर में सब भूल गया था.
‘’तो तुझे ‘क’ लिखना कैसे याद रह गया नालायक’’, अध्यापक ने पूछा?
सर वो तो मैं देख रहा था की कंप्यूटर को हिन्दी में कैसे लिखेंगे, और यह लिखने में ही तीन घंटे निकल गये.
ऐसा है यह मच्छरु :)
मच्छरु ने अपनी टूटी-फूटी, मिश्रित हिन्दी-अंग्रजी में उत्तर दिया कि, ‘’मुझे कुछ नहीं बनना है’’.
मुझे लगा की शायद मच्छरु मेरा प्रश्न सही से समझ नहीं पाया हो, तो मैंने फिर से पूछा कि जैसे कुछ बच्चे भविष्य में इंजिनियर, तो कुछ डाक्टर, कुछ अध्यापक, या फिर कुछ खिलाड़ी बनना चाहते हैं. ठीक उसी प्रकार तू क्या बनना चाहता है?
मैं कुछ नहीं बनना चाहता हूँ.
परन्तु क्यों?
क्योकिं मुझे पसंद नहीं है.
तो तुझे क्या पसंद है?
मैं एक सेमसंग गैलेक्सी एस थ्री (Samsung Galaxy S3) खरीदना चाहता हूँ, और एक टीवीएस अपाचे (TVS Apache) मोटरसाईकिल खरीदना चाहता हूँ.
अरे मच्छरु, ये तो ठीक है, परन्तु इसके अतिरिक्त जीवन में क्या चाहता है?
कुछ नहीं.क्यों, पढ़ाई पूरी करने के बाद तू अपने पिताजी के साथ दुबई नहीं जाना चाहता है?
जाऊंगा, परन्तु घूमने, काम करने नहीं, बस दो तीन महीने के लिये.
अच्छा, एक बात बता की तेरा नाम मच्छरु क्यों है? मच्छरु का मतलब तो मच्छर (mosquito) होता होगा ना?
मच्छरु ने जो उत्तर दिया वह अक्षरश: (exactly) मुझे आज भी याद है, ‘’मच्छरु मीन्स मैन (man), कोदू मीन्स मच्छर’’.
मच्छरु से मेरी मुलाक़ात केरल के एक छोटे से गांव में हुई. मच्छरु, अपने बड़े भाई और माँ के साथ रहता है. मच्छरु के पिता, दुबई में काम करते हैं और दो साल में एक बार घर आते हैं. मच्छरु की माँ का एक छोटा ब्यूटी पार्लर नजदीक के शहर में है. मच्छरु का बड़ा भाई बारहवीं में पढ़ता है और इंजीनियरिंग की तैयारी भी कर रहा है और पढाई के अलावा बाहरी दुनिया से कोई मतलब नहीं रखता है.मच्छरु अपने बड़े भाई के ठीक विपरीत है, पढाई के सिवाय पूरी दुनिया से मतलब रखता है. मच्छरु की माँ प्रतिदिन प्रात: नौ बजे तक घर का सारा काम निपटा कर अपनी स्कूटी से अपने ब्यूटी पार्लर को चले जाती है, और माँ के जाने के पांच मिनट बाद मच्छरु भी पैदल घर से निकल जाता है. दिन भर मच्छरु पूरे गाँव, और आसपास के गाँव और शहरों की पदयात्रा करता हुआ, नयी-नयी जगह भ्रमण करता हुआ, अपने मित्रों से मुलाकात कर देर शाम तक घर पहुंच ही जाता है. लगभग प्रतिदिन मच्छरु अपनी माँ के ब्यूटी पार्लर भी पहुंच जाता है. अत: माँ को देखते-देखते मच्छरु भी मेकअप, फेशियल, मसाज आदि भी सीख चुका है. मच्छरु का रंग सांवला है जो की मच्छरु को बिलकुल पसंद नहीं है. मच्छरु किसी फ़िल्मी हीरो सा गोरा दिखना चाहता है इसलिए अपनी माँ के ब्यूटी पार्लर जा कर, या फिर घर पर ही मच्छरु प्रतिदिन अपना फेशियल स्वयं करता है. मच्छरु को आशा है कि रोज क्रीम-पाउडर लगा-लगा कर एक दिन वह गोरा हो जाएगा, और मच्छरु की माँ इस आशा में रहती है एक दिन मेरा बेटा समझदार हो कर मेरा मेकअप का सामान बरबाद करना छोड़ देगा.
मच्छरु व्यवहार का बड़ा सुगम है. कोई आस-पड़ोसी या मित्र, मच्छरु से किसी काम के लिए कहे तो मच्छरु कभी मना नहीं करता है यही कारण है की मच्छरु एक लोकप्रिय चरित्र है. मच्छरु का वास्तविक नाम बिबिन है परन्तु घर का नाम मच्छरु है और वह मच्छरु नाम से ही प्रसिद्ध है. मच्छरु का रंग सांवला, कद पांच फुट चार इंच, दुबला पतला शरीर और उम्र पंद्रह-सोलह साल के आस-पास होनी चाहिए यद्यपि वह बारह या तेरह साल का बालक सा प्रतीत होता है. जब मैं, मच्छरु से पहली बार मिला था उसकी, हाईस्कूल की परीक्षाएं नजदीक थी, और इस बात का पता मुझे कैसे चला यह बड़ी मजेदार घटना है.एक सुबह हम लोग कार से समुद्र तट की ओर जा रहे थे और जब मच्छरु को यह पता चला तो वह भी जिद कर के हमारे साथ हो लिया. कुछ दूर आगे जा कर जब हम एक चौराहे के पास कुछ देर के लिए रुके. उस चौराहे के पास ही मच्छरु का विद्यालय था, और मच्छरु को वहाँ पर खड़े अपने कुछ मित्र मिल गए और वह उनसे वार्तालाप करने में व्यस्त हो गया. थोड़ी देर में जब हम लोग चलने को तैयार हुए तो मच्छरु कार में नहीं चढा. मैंने उत्सुकतावश, अपने स्थानीय पथ प्रदर्शक (local guide) से मच्छरु के हमारे साथ नहीं चलने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि आज मच्छरु की हाईस्कूल की बोर्ड प्रैक्टिकल परीक्षा (Board practical examinations) है. तो मैंने जानना चाहा की क्या मच्छरु को पहले से इस बारे में पता नहीं था? तो स्थानीय पथ प्रदर्शक ने बताया की वह भूल गया था, लेकिन अभी उसके मित्रों ने उसे याद दिलाया तो वह परीक्षा देने को जा रहा है. हाईस्कूल परीक्षा किसी भी विद्यार्थी के जीवन का पहला तनाव भरा क्षण होता है. परन्तु यह बात देखने योग्य थी कि मच्छरु के चेहरे पर एक शिकन भी नहीं थी. जैसे थोड़ी देर पहले वह हमारे साथ घूमने चल रहा था उसी तरह अब वह परीक्षा देने जा रहा था. बाद में मच्छरु की बहन ने बताया की यह मच्छरु की कोई नयी बात नहीं है, टेंशन लेना तो मच्छरु ने सीखा ही नहीं है.
एक बार मच्छरु के अध्यापक ने मच्छरु के माता-पिता को विद्यालय में बुलवाया. तब मच्छरु कक्षा आठ में पढ़ता था. मच्छरु के पिता तो घर में थे नहीं अत: मच्छरु की माँ और मौसी दोनों विद्यालय पहुंचे तो अध्यापक ने उनको एक खाली उत्तर पुस्तिका (answer sheet) थमा दी और कहा पढो. उस उत्तर पुस्तिका में नाम तो मच्छरु का लिखा था, पर इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं लिखा था. तो मच्छरु की माँ ने अध्यापक से कहा की ये तो खाली है, इसमें तो कुछ लिखा ही नहीं है. तो अध्यापक महोदय बोले, ध्यान से देखिये आपके सपूत ने ‘क’ लिखा है. दोनों बहनों के यह बात कुछ समझ में नहीं आयी तो अध्यापक ने उंगली से दिखाया कि कंम्प्यूटर साइंस की परीक्षा में आपके नालायक पुत्र ने पूरी उत्तर पुस्तिका में बस पहली पंक्ति (row) में केवल ‘क’ लिखा है. अब बताओ कि इस नालायक का मैं क्या करूँ?
मच्छरु को बुलाया गया और पूछा गया कि ये क्या लिखा है, प्रश्नों के उत्तर कहाँ हैं?
तो मच्छरु बोला कि प्रश्न पत्र (exam paper) देखकर में सब भूल गया था.
‘’तो तुझे ‘क’ लिखना कैसे याद रह गया नालायक’’, अध्यापक ने पूछा?
सर वो तो मैं देख रहा था की कंप्यूटर को हिन्दी में कैसे लिखेंगे, और यह लिखने में ही तीन घंटे निकल गये.
ऐसा है यह मच्छरु :)
1 comment:
देर आये, दुरूस्त आये ..
Nice to see u back..
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