एक धोबी था, और उसके पास एक कुत्ता और
गधा था. धोबी प्रतिदिन गधे की पीठ में कपडे रखकर नदी किनारे ले जाता और धो कर वापस
गधे की पीठ में रखकर वापस लाता. कुत्ते का काम धोबी की अनुपस्थिति में घर की
रखवाली करना था.
एक शाम जब धोबी घर में आराम
कर रहा था, तो बाहर कुत्ता और गधा आपस में बातकर रहे थे. गधा बोला कि यार कुत्ते!
मैं तो अपने काम से तंग आ गया हूँ. प्रतिदिन कपडे ढो-ढो कर मेरी कमर टेढ़ी हो गयी
है, एक दिन का भी आराम नहीं है. मन तो करता है कि कहीं दूर भाग जाऊं, और वहां जाकर
दिन-रात बस सोता रहूँ. भाई! तेरा काम कितना अच्छा है, तू तो रोज घर में ही रहता
है, तेरे मजे हैं यार.
यह सुनकर कुत्ता तोड़ा सा
अचकचाया, और बोला कि, अबे गधे! दिन भर रस्सी से बंधा रहता हूँ, ना कहीं आ सकता हूँ
ना कहीं जा सकता हूँ. ऊपर से हर आने-जाने वाले पर भौंकना पड़ता है. आस-पड़ोस के
बच्चे आकर पत्त्थर अलग मारते हैं. अगल-बगल के सारे फालतू कुत्ते मिलकर, यहाँ-वहाँ
घूमकर कितने मजे लेते हैं, और मेरी जवानी घर के इस कोने में बीत रही है. मन तो
मेरा करता है कि किसी को भी पकड़ के फाड़ डालूँ.
गधा बोला, अरे कुत्ता भाई!
क्रोधित क्यों होते हो, बाहर की दुनिया में कुछ नहीं रखा है. एक नदी है जहां सारे
धोबी आकर नहाते हैं और कपडे भी धोते हैं. बस यही है दुनिया. मैं तो कहुं भैया घर
की आधी रोटी भी भली.
कुत्ता बोला, बेटे! किसको
गधा बना रहा है? सुबह शाम, मुझे भी आजादी मिलती है, थोडी देर जंगल जाकर फ्रेश होने
की, किसी दिन मेरे साथ चल तो तुझे दुनिया दिखाता हूँ. वो तो मालिक डंडे बरसाता है,
नहीं तो मैं तो रातभर घर नहीं आऊँ. क्या करूँ धोबी का कुत्ता हूँ, ना घर का घाट
का.
तभी गधा बोला, देख भाई मेरे
पास एक आईडिया है, क्यों ना हम अपना काम आपस में बदल लें. तुझे घर में रहना पसंद
नहीं है और मुझे रोज काम पर जाना. कल से तू मालिक के कपडे लेकर नदी किनारे चले
जाना और मैं यहाँ घर की रखवाली करूंगा. देख ऐसे तू भी खुश और में भी खुश. बोल क्या
बोलता है?
कुत्ते को भी विचार उत्तम
लगा, और बात पक्की हो गयी. अगले दिन पौ फटते ही धोबी के उठने से पहले कुत्ते ने
धोबी के सारे कपडे एक-एक कर नदी किनारे ले जाने शुरू कर दिये. इस काम को करने में
कुत्ते को गधे की तुलना में अधिक समय लग रहा था क्योकि वह एक-एक दो-दो कपडे मुंह
में दबाकर नदी किनारे पहुंचा रहा था. कुत्ते ने सोचा की यदि मालिक नींद से उठ गया
तो मुझे फिर से बाँध देगा और गधे को नदीं किनारे ले जाएगा. अत: जितनी जल्दी हो सके
सारे कपडे नदी किनारे पहुंचा दूँ. और यदि धोबी इम्प्रेस हो गया तो फिर प्रतिदिन
कपडे मैं ही ले कर जाउंगा और वह गधा दिन भर जंजीर में बंधा रहेगा. इस जल्दबाजी के
चक्कर में कुछ कपड़े कुत्ते के दांतों में आकर फट
गये और कुछ ले जाते समय झाड़ियों में फंस कर चीथडे-चीथड़े हो गये.
उधर जैसे ही गधे ने देखा की
कुत्ते ने अपना काम पूरा कर दिया, उसने अपने मालिक को इम्प्रेस करने के लिए जोर–जोर
से ‘ढेंचू-ढेंचू’ कर रेंकना आरम्भ कर दिया. मानो गधा यह दिखाना चाहता हो की वह
कुत्ते से अच्छा भौंक सकता है और घर की अच्छी रखवाली कर सकता है. गधे को क्या पता
कि भौंकने का भी समय और कारण होता है, उसने सोचा की भौंकना मतलब बिना रुके रेंकते
रहना. अभी उजाला नहीं हुआ था और गधे ने ढेंचू-ढेंचू कर पूरी कालोनी में हाहाकार
मचा दिया था.
कान ढककर, गधे के चुप
होने का इंतज़ार कर रहा धोबी अंतत: आधी
नींद में ही क्रुद्ध होकर उठा और फिर उसने एक मोटे डंडे से गधे की जमकर कुटाई की,
जब तक कि गधा निढाल हो कर गिर ना पड़ा. उसके बाद धोबी ने जब इधर-उधर बिखरे कपड़े
देखे तो उसी डंडे से कुत्ते की कुकुरगत की जिसने सारे कपडों का सत्यानाश कर दिया
था.
तब से यह कहावत प्रसिद्ध
हुई कि, ‘’जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे’’. इसका अर्थ है की जिसको
जो कार्य दिया गया है उसको उसी को ईमानदारी से पूरा करना चाहिये. यदि अपना काम को
अधूरा छोड़कर दुसरे के काम में हाथ डालोगे तो डंडे ही पड़ेंगे.
इस कहानी को कहने का उद्देश
यह बताना था कि हमारे भारत देश में भी पिछले कुछ समय से यही हो रहा है. महत्वपूर्ण
पदों पर विराजमान व्यक्ति अपना काम छोड़ कर दूसरे काम को करने में अधिक आनंद लेते
है. पहला उदाहरण हमारी पुलिस,
जिसने सताए हुए लोगों की रक्षा करने के बजाय स्वयं ही असहाय जनता को सताना शुरू कर
दिया. यदि यह बात सही नहीं है सोचिये क्यों आज आम आदमी पुलिस के नाम से डरता है? जबकि पुलिस से चोर उच्चकों को डरना चाहिए, पर वे
आज निर्भय हैं. बात बहुत छोटी लगती है लेकिन है बहुत गंभीर.
दूसरा उदाहरण, नेता जिन्हें
जनता की भलाई के लिए नियम क़ानून बनाने थे और देश का विकास करना था वे अपना कार्य छोड़कर
अपना और अपना, अपने बेटे, बेटियों, भतीजे और भांजों का विकास करने में लगे हैं.
राष्ट्र के नायक (प्रधानमंत्री), जिनको संसद में दहाड़ना था उन्होनें मौन व्रत धारण
कर लिया. उत्तर प्रदेश की एक पूर्व मुख्मंत्री जिन्हें अपने राज्य में रोजगार और
शिक्षा के नए अवसर खड़े करने थे, उन्होंने माली और मूर्तिकार का काम आरंभ कर दिया,
और जनता का धन खड्या दिया (खड्डे में डालना) उपवन बनाने में और उसमें अपनी और हाथी
की मूर्तियाँ लगाने में. वर्तमान मुखमंत्री ने जनता के पैसे से जनता को लेपटाप
बंटवाने का काम शुरू कर दिया है. अरे भाई! कंप्यूटर कंपनियों के डिस्ट्रीब्यूटर हो
या प्रदेश के मुख्यमंत्री. किसी ने सही ही कहा था कि जिन्हें गाय-बकरियां चरानी थी
वो आज देश और प्रदेश चलाते हैं, यही मेरे भारत का दुर्भाग्य है.
कर्नाटक के एक मुख्मंत्री
ने सारी खानें खोद डाली, तो कोयला मंत्री ने आव देखा ना ताव सारा कोयला, कोयले के
दामों में बेच दिया. संचार मंत्री को सूचना लगी तो बोले कि मैं तो पीछे रह गया, उसने
सारे स्पेक्ट्रम औने-पौने दामों में बेच दिये, और फिर जब किसी ने मौनी बाबा से
प्रश्न पूछे तो बाबा बोले, कि मैं ईमानदार हूँ, इससे अधिक मैं कुछ नहीं जानता हूँ.
जिन व्यक्तिओं को तिहाड के अन्दर
होना था वो बाहर बैठे हैं और जो बाहर रहने लायक हैं, उन्हें अन्दर करने की जुगत
निरंतर जारी है. जिन पत्रकारिता समूहों ने जनता को जागरुक करने के लिए समाचार चैनल
खोले थे, अब वो अपना कार्य छोडकर अलग-अलग राजनीतिक शक्तियों के सम्मान गान जनता को
सुनाते हैं. क्रिकेट खिलाड़ी, क्रिकेट अच्छा खेलें या नहीं परन्तु सामान बेचना खूब
जानते हैं.
ना फिल्में अच्छी नहीं बन
रही हैं और ना देश सही से चल रहा है, क्योंकि नेता और अभिनेता दोनों क्रिकेट में, और
क्रिकेटर सट्टेबाजी में व्यस्त हैं. दोयम
दर्जे की विदेशी अभिनेत्रियाँ भारतीय फिल्मों में प्रथम दर्जे में अभिनय कर रही
हैं और प्रथम श्रेणी की भारतीय अभिनेत्रियाँ तृतीय श्रेणी के कार्यों में लगी हैं.
देश के युवा आई पी एल देख रहे हैं, कुछ फेसबुक
से खेल रहे हैं, और बांकी बचे हुए ‘बिग-बाँस’ देख रहे हैं.
जिन अपराधियों की
विशेषज्ञता दादागिरी, हत्याएं, बलात्कार और चोर-बाजारी में थी, वो आज अपना काम छोड़कर
संसद में बैठकर, जनता के लिये योजनाएं और नियम कानून बनाते हैं, और जो लोग देश का
भला करना चाहते हैं वो जंतर-मंतर, रामलीला मैदान या फिर इंडिया गेट में देखे जाते
हैं.
इसके विपरीत जो व्यक्ति अपना
काम ईमानदारी से पूरा करना चाहता है, उसे दूसरा काम दे दिया जाता है, यदि इसे भी
ईमानदारी से करे तो तीसरा काम दे दिया जाता है, मतलब ट्रांसफर कर दिया जाता है.
स्थिति बड़ी विकट है, किसी
भी ओर देख लीजिये हर कोई अपना काम छोड़कर
दुसरे का काम, और दूसरा, तीसरे का काम कर रहा है, पर पता नहीं हे भगवान! ये डंडा
कब बाजेगा?