लंदन और इसके आसपास के क्षेत्र में सामान्यत: बर्फवारी ज्यादा नहीं होती है, लेकिन मौसम विभाग द्वारा १२ जनवरी २०१७ की शाम को तूफ़ान और भारी हिमपात की भविष्वाणी की गयी थी.
अस्पातल से हमें बताया गया था कि जब तक एक निश्चित आवृति (Frequency) पर प्रसव पीड़ा ना होने लगे, अस्पताल ना आएं, घर पर ही आराम करें। दिन से मेघा को प्रसव पीड़ा होनी आरंभ हो गयी और जो की शाम होने के साथ-साथ बढ़ती चली जा रही थी. यदि मौसम इतना खराब ना होता तो कोई चिंता की बात नहीं होती, क्योंकि इस देश की आपातकालीन सेवा (Emergency service) बहुत ही जबरदस्त है, बस एक फोन घुमाने भर की देर है और कुछ ही मिनटों में सहायता आपके द्वार पहुँच जाती है.
लेकिन ये तूफान, इसको भी तो आज ही आना था?
मेघा को इस स्थिति में अस्पताल तक पहुँचाना मेरा काम था, इसलिये मेरे मन में रह-रह के शंका उठ रही थी कि कहीं बर्फवारी बहुत तीव्र ना हो जाए और अस्पताल जाते-जाते हम दोनों रास्ते में ही फंस जाये. ऐसी स्थिति में तो एम्बुलेंस भी हम तक नहीं पहुंच पाएगी।
भारत में यदि कोई व्यक्ति बीमार होता है, तो सामान्यत: घर परिवार, आस पड़ोस के लोग, या रिश्तेदार उसे अस्पताल लेकर जाते हैं। कभी-कभी बीमार मनुष्य के साथ पूरा का पूरा कुनबा चलता है, खासकार छोटे शहरों और ग्रामीण इलाको में. क्योंकि आपको पता होता है कि अस्पताल में प्रत्येक व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता पड़ेगी। कम से कम एक व्यक्ति पर्ची कटाने को, एक- दो लोग मरीज को सही वार्ड में ले जाने को, और एक-दो व्यक्ति नजदीकी मेडिकल स्टोर से दवाइयाँ लाने को. एक नजदीकी व्यक्ति आपातकाल में धन की व्यवस्था करने को भी चाहिए, क्योंकि बिना पैसा जमा करे तो मरीज को अस्पताल में भर्ती ही नहीं किया जाता है. इन सबके अतिरिक्त, एक-दो तेज तर्रार, दबंग किस्म के व्यक्ति, डाक्टर और अन्य कर्मचारियों से ऊंची आवाज में बात करने के लिए भी चाहिए, क्योंकि यदि आप शोर-शराबा ना करें तो भारतीय अस्पतालों, खासकर भारतीय सरकारी अस्पतालों में आपके मरीज को कोई झांकने तक नहीं आएगा.
इसके विपरीत, इंग्लैंड में आपातकालीन वाहन (Ambulance) के आपके दरवाजे पर पहुंच जाने के बाद आपको मरीज की कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती है. लेकिन मेरी चिंता का कारण यह तूफानी, बर्फीला मौसम था जिसके कारण आवश्यकता होने पर एम्बुलेंस भी शायद हम तक नहीं पहुंच पाती। अंतत: बिगड़ते मौसम को देखकर मैंने मेघा को निर्धारित प्रसव पीड़ा तक पहुंचने से पहले ही अस्पताल ले जाने का निर्णय किया। मेघा को कार में बैठाकर, मैं कार से अस्पताल की और चला. अन्धेरा होते होते, तूफ़ान, बारिश और हिमपात बढता ही जा रहा था, और इन सबसे ज्यादा मेघा की प्रसव पीड़ा बढ़ती जा रही थी. जो रास्ता लगभगए बीस मिनट का था, उसे तय करने में हमें लगभग डेढ़ घंटे लग गए क्योंकि खराब मौसम के कारण यातायात या तो अवरुद्ध था या बहुत ही धीमी गति से चल रहा था. लेकिन देर से ही सही पर हम सही समय पर अस्पताल पहुंच ही गए और मैंने शीघ्रता से मेघा को एडमिट कराया, तब जाकर मुझे थोड़ा आराम मिला कि चलो अब चाहे मौसम कितना ही बिगड़े, देखा जाएगा।
अंतत: सुबह होते-होते, मेघा ने एक छोटी सी सुंदर कन्या को जन्म दिया. बिटिया ने आते ही अपने मधुर कृन्दन से मानो अपने आने का उद्घोष किया. मेघा के आंसूओं का कारण तो समझ में आता है, पर ना जाने क्यों उस नन्हीं सी बिटिया को देखकर मेरे भी आँसू निकल आये. पुरानी हिंदी फिल्मो में आपने कई बार देखा होगा जब बेटे को देखकर माँ रोने लगती है, तो बेटा माँ से पूछता है.
माँ! तू रो रही है?
माँ अपने आंसू पोछते हुए कहती है , `ये तो ख़ुशी के आंसू हैं पगले`. संभवत: जीवन में पहली बार मुझे भी इन ख़ुशी के आंसुओं का अनुभव हुआ था.
क्योंकि ये नन्हीं सी गुड़िया, तूफानी बर्फीली रात में पैदा हुई थी, अत: मैं इसका नाम 'हिम यामिनी' रखना चाहता था, जिसका अर्थ होता बर्फ की रात. परन्तु इस नाम के लिए पारिवारिक आम सहमति नहीं बन पायी। अंतत: बिटिया का नाम 'हारिल' रखा गया. हारिल भारत उपमहाद्वीप में पाये जाने वाली, हरे रंग की चिड़िया होती है. इसें 'हरियल' के नाम से भी जाना जाता है. हारिल पक्षी के बारे में कहावत है कि यह सदैव एक तिनका लेकर उढ़ती है, क्योंकि इस तिनके को हारिल अपना सहारा मानती है.
वैसे, बेटियां तो होती ही नन्हीं सी चिड़ियाँ हैं, एक दिन फुर्र से उड़ जाएंगी।
आपकी जानकारी के लिए कन्या भ्रूण हत्या में हम भारतवासी दुनिया में चौथे नंबर पर है....
बांकी कथा अगले अंकों में.
अस्पातल से हमें बताया गया था कि जब तक एक निश्चित आवृति (Frequency) पर प्रसव पीड़ा ना होने लगे, अस्पताल ना आएं, घर पर ही आराम करें। दिन से मेघा को प्रसव पीड़ा होनी आरंभ हो गयी और जो की शाम होने के साथ-साथ बढ़ती चली जा रही थी. यदि मौसम इतना खराब ना होता तो कोई चिंता की बात नहीं होती, क्योंकि इस देश की आपातकालीन सेवा (Emergency service) बहुत ही जबरदस्त है, बस एक फोन घुमाने भर की देर है और कुछ ही मिनटों में सहायता आपके द्वार पहुँच जाती है.
लेकिन ये तूफान, इसको भी तो आज ही आना था?
भारत में यदि कोई व्यक्ति बीमार होता है, तो सामान्यत: घर परिवार, आस पड़ोस के लोग, या रिश्तेदार उसे अस्पताल लेकर जाते हैं। कभी-कभी बीमार मनुष्य के साथ पूरा का पूरा कुनबा चलता है, खासकार छोटे शहरों और ग्रामीण इलाको में. क्योंकि आपको पता होता है कि अस्पताल में प्रत्येक व्यक्ति की सहायता की आवश्यकता पड़ेगी। कम से कम एक व्यक्ति पर्ची कटाने को, एक- दो लोग मरीज को सही वार्ड में ले जाने को, और एक-दो व्यक्ति नजदीकी मेडिकल स्टोर से दवाइयाँ लाने को. एक नजदीकी व्यक्ति आपातकाल में धन की व्यवस्था करने को भी चाहिए, क्योंकि बिना पैसा जमा करे तो मरीज को अस्पताल में भर्ती ही नहीं किया जाता है. इन सबके अतिरिक्त, एक-दो तेज तर्रार, दबंग किस्म के व्यक्ति, डाक्टर और अन्य कर्मचारियों से ऊंची आवाज में बात करने के लिए भी चाहिए, क्योंकि यदि आप शोर-शराबा ना करें तो भारतीय अस्पतालों, खासकर भारतीय सरकारी अस्पतालों में आपके मरीज को कोई झांकने तक नहीं आएगा.
इसके विपरीत, इंग्लैंड में आपातकालीन वाहन (Ambulance) के आपके दरवाजे पर पहुंच जाने के बाद आपको मरीज की कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती है. लेकिन मेरी चिंता का कारण यह तूफानी, बर्फीला मौसम था जिसके कारण आवश्यकता होने पर एम्बुलेंस भी शायद हम तक नहीं पहुंच पाती। अंतत: बिगड़ते मौसम को देखकर मैंने मेघा को निर्धारित प्रसव पीड़ा तक पहुंचने से पहले ही अस्पताल ले जाने का निर्णय किया। मेघा को कार में बैठाकर, मैं कार से अस्पताल की और चला. अन्धेरा होते होते, तूफ़ान, बारिश और हिमपात बढता ही जा रहा था, और इन सबसे ज्यादा मेघा की प्रसव पीड़ा बढ़ती जा रही थी. जो रास्ता लगभगए बीस मिनट का था, उसे तय करने में हमें लगभग डेढ़ घंटे लग गए क्योंकि खराब मौसम के कारण यातायात या तो अवरुद्ध था या बहुत ही धीमी गति से चल रहा था. लेकिन देर से ही सही पर हम सही समय पर अस्पताल पहुंच ही गए और मैंने शीघ्रता से मेघा को एडमिट कराया, तब जाकर मुझे थोड़ा आराम मिला कि चलो अब चाहे मौसम कितना ही बिगड़े, देखा जाएगा।
अंतत: सुबह होते-होते, मेघा ने एक छोटी सी सुंदर कन्या को जन्म दिया. बिटिया ने आते ही अपने मधुर कृन्दन से मानो अपने आने का उद्घोष किया. मेघा के आंसूओं का कारण तो समझ में आता है, पर ना जाने क्यों उस नन्हीं सी बिटिया को देखकर मेरे भी आँसू निकल आये. पुरानी हिंदी फिल्मो में आपने कई बार देखा होगा जब बेटे को देखकर माँ रोने लगती है, तो बेटा माँ से पूछता है.
माँ! तू रो रही है?
माँ अपने आंसू पोछते हुए कहती है , `ये तो ख़ुशी के आंसू हैं पगले`. संभवत: जीवन में पहली बार मुझे भी इन ख़ुशी के आंसुओं का अनुभव हुआ था.
क्योंकि ये नन्हीं सी गुड़िया, तूफानी बर्फीली रात में पैदा हुई थी, अत: मैं इसका नाम 'हिम यामिनी' रखना चाहता था, जिसका अर्थ होता बर्फ की रात. परन्तु इस नाम के लिए पारिवारिक आम सहमति नहीं बन पायी। अंतत: बिटिया का नाम 'हारिल' रखा गया. हारिल भारत उपमहाद्वीप में पाये जाने वाली, हरे रंग की चिड़िया होती है. इसें 'हरियल' के नाम से भी जाना जाता है. हारिल पक्षी के बारे में कहावत है कि यह सदैव एक तिनका लेकर उढ़ती है, क्योंकि इस तिनके को हारिल अपना सहारा मानती है.
वैसे, बेटियां तो होती ही नन्हीं सी चिड़ियाँ हैं, एक दिन फुर्र से उड़ जाएंगी।
आपकी जानकारी के लिए कन्या भ्रूण हत्या में हम भारतवासी दुनिया में चौथे नंबर पर है....
बांकी कथा अगले अंकों में.